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मेरी अमरनाथ यात्रा के 2014

यात्रा का प्रथम चरण---गहमर से वाराणसी
मैं बाबा बरफानी की यात्रा का मन बना चुका था। परिवार से इजाजत और दोस्‍तो की सलाह के बाद यह इच्‍छा और बलवती हो गयी। मैने मन की सुनते हुए 23 जुलाई की तिथी निश्‍चित किया और अपने काम में लग गया। घर से महज 200 मीटर की दूरी पर भी अारक्षण केन्‍द्र होने के वावजूद मैं आरक्षण नहीं करा पाया आैर न ही किसी प्रकार की तैयारी कर रहा था।धीरे धीरे 18 जुलाई आ गया तब जा कर मैने अपना आरक्षण कराया, इस दौरान गहमर के ही गौरी चौरसिया और बीटू सिंह सिकरवार जो माननीय रेल मंत्री मनोज सिन्‍हा के साथ अच्‍छे संबंध वाले थे खुद बार बार हमसे पूछ कर मेरा आरक्षण कर्न्‍फम कराने का प्रयास किया और हमें आश्‍वस्‍त कर यात्रा की तैयारी करने को कहा। 23 जुलाई 2014 को अपने नीयत समय पर सुबह 8 बजे माल्‍दाह टाउन -भिवानी फरक्‍का एक्‍सप्रेक्‍स में मैं अकेला अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। यह विश्‍वास लिये कि कोई न कोई साथी हमें अवश्‍य मिलेगा। हमारी ट्रेन वाराणसी पहुँची वाह से हमें वाराणसी - जम्‍मूतवी बेगमपुरा एक्‍सप्रेक्‍स से जम्‍मू जाना था। अचानक वाराणसी स्‍टेशन पर ही हमारी मुलाकात एक फेशबुक मित्र हिमांशु आन्‍नद से हुई वह भी बाबा के दर्शन के लिये जा रहे थे इस प्रकार हम घर से चले 1 और वाराणसी तक 2 हो चुके थे।

द्वितीय चरण जम्‍मू से पहलगाम
23 जुलाई से 25 जुलाई

हम लोग ट्रेन में सवार हो चुके थे टी टी की कृपा से दोनो की सीट एक साथ हो गयी थी, अगले दिन 24 जुलाई को हम लोग सवा 11 बजे जम्‍मू पहुँचे। बाहर निकलने के साथ हम लोगो ने अन्‍य साथीयों की तलाश करनी शुरू कर दिया। रेलवे स्‍टेशन के बगल में वैष्‍णवी धर्मशाला जहाँ अमरनाथ यात्रीयों का मेडिकल एवं रजिस्‍ट्रेशन होता था वहा हम लोग फार्म इत्‍यादि भरने की प्रक्रिया पूरी कर रहे थे तभी हमारी मुलाकात वाराणसी से आये प्रदीप श्रीवास्‍तव, सौरभ गुप्‍ता, सोनू श्रीवास्‍तव, और संतोष जायसवाल से हुई, सब लोग आपस में मिल कर सामुहिक यात्रा करने का प्रस्‍ताव रखे और एक योजना के तहत उसे मूर्ति रूप दिया गया। हम लोगो ने वही से प्रदीप श्रीवास्‍तव के परिजन के पूर्व परिचित नरेश शर्मा की टबेरा गाड़ी जे0के0-02 ए;डब्‍लू 9192 को 2600 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से बुक किया और चल पडे अपनी मंजिल की तरफ। हम लोगो ने जम्‍मू से निकल कर शाम 4 बजे खाना खाया और फिर रात 11 बजे रामबन आ गये वहा हम लोगो ने कल्‍याणी होटल के रूम नम्‍बर 112 को 1500 रूपये रात्रि के हिसाब से लेकर रात्रि विश्राम किया और सुबह 5 बजे पहलगाम की तरफ चल दिये। हम लोगो ने उस दिन का पहला पडाव जवाहर टंर्नल पर लिया वहा चाय पीया गया और फिर हम लोग सीधे अंन्‍तनाग होते हुए पहुँचे पहलगाम के सी0आर0पी0 कैम्‍प वहा हम लोग फ्रेश होकर हुए और सारे सामनो को गाडी में रखते हुए चढाई हेतु आवश्‍यक सामान कपडे, स्‍वेटर, टार्च, रेनीकोट, ड्राई फूड, दवाये इत्‍यादि एक बैग में रख शेष सामान को गाडी में रख दिया और पहलगाम के टैक्‍सी स्‍टैन्‍ड पर आ पहुँचे। अब यहा हमें अपनी गाड़ी छोडनी थी। लोकल नियमो के अनुसार अब पहलगाम से हमें वहा की लोकल गाडी लेकर चंन्‍दन वाडी तक की यात्रा करनी थी

तृतीय चरण पहलगाम से बाबा के र्दशन 25 जुलाई से 26 जुलाई


हम 6 लोग पहलगाम पहुँच चुके थे। वहॉं से 16 किलोमीटर दूर चंन्‍दनवाडी की यात्रा हम लोगो को पहलगाम मोटर युनियन के द्वारा प्रदत गाड़ी से करनी थी। यूनियन ने महज 16 किलोमीटर की यात्रा के लिये हम लोगो को एक मारूती बैन 100 रूपये प्रति सवारी की दर से उपलब्‍ध कराया। हम लोग सुबह 10 बजे चंन्‍दनवाडी स्‍वागत द्वार पहुँचे। वहा से चेकिग इत्‍यादि कराने के बाद हम लोग चंदन वाडी प्रेवश द्वारा पर आ गये वहा हम लोगो ने लंगर में हल्‍का नास्‍ता किया और फिर बाबा भोले की जयकार करते हुए अपनी यात्रा प्रारभ्‍भ कर दिया। वही से हम लोगो ने एक नीजी फोन से अपने अपने घर यात्रा प्रारभ्‍भ करने की सूचना दिया और प्रवेश द्वार से प्रवेश कर गये हम लोगो के सामने पीस्‍सूटाप की कठिन चढाई थी जिससे हम लोगो ने 3 घंटे में पूरा किया और 2 बजे पिस्‍स्‍ूाटाप पहुँचे। वहा लंगर में हम लोगो ने हल्‍का नास्‍ता लिया और फिर वहा से 3 किलोमीटर दूर जोजीपाल के लिये चल पड़ुे। हम लोग जोजीपाल,नागरोती होते हुए शाम 8 बजेे शेषनाग पहुँचे और वहा रात्रि विश्राम के लिये 225 रूपया प्रति व्‍यक्तिी के दर एक कैम्‍प किराये पर लेकर रात्रि विश्राम किया। थकान और बदन दर्द के साथ आक्‍सीजन की कमी के कारण किसी की हिम्‍मत भोजन की नहीं थी हम लोग सो गये। अगले दिन प्रात: ही उठ कर हम लोगो ने चलना चाहा मगर हिम्‍मत जबाब दे चुकी थी महागुनटोप एवं पंचतरनी की कठिन चढाई सामने थी सो हम लोगो ने 900 रूपये में घोडा किराये पर लिया और उस के द्वारा 19 किलोमीटर की चढाई पूरी कर संगम तक आये। संगम में हम लोगो ने स्‍नान किया और वहा से 3 किलोमीटर दूर और 400 सीढी चढ कर बाबा के धाम तक आ पहुँचे। गुफा में बाबा का र्दशन मिलते ही सारे कष्‍ठ दूर हो गये मन को बहुत राहत मिली मनप्रसन्‍न हुआ हम लोगा बाबा बरफानी की जयकार करते बाहर आये प्रसाद इत्‍यादि चढा कर वापस नीचे आये और वहा से सीधे बालटाल की ओर प्रस्‍थान कर कर गये रात्रि 11 बजे बालटाल आकर सभी ने सी आ पी के कैम्‍प में रात्रि विश्राम किया और अपनी यात्रा का प्रथम दर्शन पूर्ण किया

चतुर्थ चरण श्रीनगर,पटनीटाप भ्रमण 27 जुलाई से 28 जुलाई

27 जुलाई 2014 की प्रात: हम लोग बालटाल से श्रीनगर जाने के लिये चल पड़े, बीच रास्‍ते में हम लोगो ने अपने लेह लदाख जाने का प्रोग्राम निरस्‍त कर दिया और सीधे श्रीनगर डलझील आ पहुँचे, वहा शिकारा का आंन्‍नद लिये हमारे मित्रों ने जाडे के सामानो का बाजार किया, शिकारे में ही नास्‍ता किया और घुमते हुए दोपहर 3 बजे वापस कटरा के लिये प्रस्‍थान कर गये। शाम 8 बजे हम पटनीटाप के पहुँचे मगर खराब मौसम ने वहा से आगे जाने नहीं दिया। हम लोगो ने पटनीटाप में होटल लिया और रात रूक गये होटल वाले ने हमारी मजबूरीयों का जम कर फायदा उठाया और एक तो काफी महँगा कमरा दिया और दूसरे 3 स्‍टार होटल के रेट पर निहायत घटिया खाना भी परोसा और उस पर दुनिया भर के टैक्‍स अलग से लिया 20 रूपये की रोटी वो भी आधी जली आधी पकी खैर किसी तरह हम लोगो ने अपनी भूख मिटाई और सो गये । सुबह हम लोग नागा मंदिर पटनीटाप का दर्शन करने चल पडृे। दर्शन पूजन के बाद हम लोग पटनीटाप घूमते रहे और फिर वहा से सीधे कटरा पहुँचे।

पंचम चरण--माता वैष्‍णो देवी की यात्रा एवं अजीवोगरीब अवस्‍था में दर्शन
28 जुलाई 2014 से 29 जुलाई 2014

खाना इत्‍यादि खा कर नहाये और फिर माता वैष्‍णो देवी की चढाई प्रारभ्‍भ किये।
हमारे पैरो में दर्द हो रहा था और मैं नंगे पैरो ही चढाई के लिये गया था सो मैं काफी धीरे गति से चढाई चढ पा रहा था मेरे साथी बार बार मेरे इंतजार में रूक रहे थे इस लिये मैने उन लोगो से चलने और मंदिर के पास मिलने का निवदेन किया, मैं धीरे धीरे चलता रहा। मुझे कुछ भूख महसूस हो रही थी, मगर कपडे गीले होने के कारण रूक नहीं पा रहा था धाीरे धीरे मैं अर्धकुमारी से नीचे भवन तक जाने वाले आसान रास्‍ते तक पहुँच गया। वहॉं पता चला कि पत्‍थर गिरने के कारण छोटा रास्‍ता बंद कर दिया गया है इस लिये हाथीमत्‍था और साझाीछत होकर भवन तक जाना होगा। मैं चल पडा मेरे साथी अभी पीछे थे मैं धीरे धीरे अपनी धुन में खोया पता नहीं कब भवन तक पहुँच गया। भवन से ठीक पहले चेकिग की लाइन लगी थी । मैं भी चेकिंग कराने के लिये लाइन में था। तभी एक सज्‍जन ने कहा कि आप जाकर प्रसाद ले ले फिर लाइन में लगें नहीं तो आपको दुबारा आना पडेगा। मैंने सोचा क्‍यो न अपने साथीयों का भी प्रसाद ले लू और चेकिग की लानइ पार कर उनका इंन्‍तजार करू।
मैने सबके लिये 7 जोडी प्रसाद लिया प्रसाद लेते लेते लाइन काफी आगे बढ गयी थी मै दौड कर अपनी जगह पहुँचना चाह रहा था। तभी एक पुलिस वाले ने हमें रोक कर यात्रा पुर्जी ले लिया और बगल में खडी लाइन में ढकेल दिया मैं समझा वह हमें आगे जाने से रोक रहा है चेकिग के लिये। मगर वह लाइन गेट नम्‍बर 3 से दर्शन की लाइन थी।जब तक हम इस बात को समझ कर वापस आने की सोचे पीछे से एक आदमी ने कहा कि आप लाइन से निकल कर दुबारा अा नहीं पाओगें जैसी माता की इच्‍छा वैसे ही दर्शन होगा मैं भी चुप हो गया और सीधा भवन के अन्‍दर के अंन्‍दर पहुँचा वहा एक नल से पानी लेकर अपने सिर पर डाला और पूरे प्रसाद को खुद चढाया तथा माता वैष्‍णो देवी का दिव्‍य दर्शन पा कर वापस आकर अपने साथीयों का इंन्‍तजार करने लगा। मेरे साथी 1 बजे रात को पहुँचे वह लोग दर्शन करने के बाद भैरो बाबा के पास चले गये और हम वहीं से नीचे कटरा के लिये प्रस्‍थान कर गये । दोपहर 10 बजे सब लोग कटरा आये खाना इत्‍यादि खा कर वह लोग बनारस और मैं अपनी पूर्व योजना के अनुसार हरिद्वार के लिये प्रस्‍थान कर गया।

मित्र के न आने से परेशान हुआ मैं सहारा बन कर आये
आदरणीय एस आर पल्‍लव जी
30 जुलाई 2014

मैं अपने पूर्व योजना के तहत जम्‍मू से हिमकुडं एक्‍सप्रेक्‍स के द्वारा हरिद्वार चल दिया। हरिद्वार में अपने एक कवि मित्र धीरज श्रीवास्‍तव के पहुँचे एवं घुमने की बात 22 जुलाई को तय थी, धीरज श्रीवास्‍तव ने मेरी पत्‍नी ममता सिंह के मैसेज के जबाब में अपनी तैयारी पूर्ण करने की बात कह चुके थे चुकि मेरे मोबाइल खराब हो चुका था इस लिये चलने से पूर्व धीरज जी से बात नहीं हुई मगर मैं आश्‍वस्‍त था वह आयेगें हम लोगो का प्रोग्राम हरिद्वार के एक होटल में मिलने की बात तय थी। मैं जम्‍मू से गाडी खुलते ही ऐसा सोया की मेरी नींद ज्‍वालापुर के पास सुबह खुली मैं रात भर वेहोश सोया रहा। सुबह मैंंने एक दूसरे फोन से धीरज जी की लोकेश जाननी चाही तो उन्‍होने ने परिवार में तबीयत खराब होने से अपनी यात्रा निरस्‍त करने की बात कही मैं हरिद्वार से महज 20 किलोमीटर दूर था और समझ नहीं पा रहा था कि क्‍या करू। तब धीरज जी ने परेशान न होने और आदरणीय पल्‍लव जी से बात कर हमें रास्‍ता बताने की बात कही। 2 मिनट के अंन्‍दर ही आदरणीय एस आर पल्‍लव जी का फोन आ गया । उन्‍होने ने हमें परेशान न होने और चिन्‍ता मुक्‍त रहने की बात कही और हर 2 मिनट पर फोन कर हमारी कुशलता और लोकेशन पूछने लगें
ठीक 8 बजे हम हरिद्वार स्‍टेशन पर थे। आदरणीय एस आर पल्‍लव जी स्‍टेशन से बाहर अपनी मोटर साइकिल से हमें रिसीव किया। हम लोगो ने वहा चाय पीया और मेरे बार बार आग्रह पर उन्‍होने हमें होटल लेने नहीं दिया और मेरा भारी समान उठावा कर खुद मोटरसाइकिल ड्राइव कर अपने आवास ले आये जहॉं उनके परिवार के लोगो ने भी मेरा स्‍वागत किया हम दोनो ने साथ में नास्‍ता लिया वह अपनने कार्यालय चले गये दोपहर में साथ में हम लोगो ने भोजन किया, चुकि अगले दिन पल्‍लव जी के पौत्री का नामकरण समारोह था सो उन्‍होने ने हमसे भी रूकने का आग्रह किया जिससे हम टाल न सके पल्‍लव जी अपने व्‍यस्‍त समय में भी हमारी कुशल क्षेम लेते रहे है और हमारा अतिथि सेवा करते रहे।

7 वां एंव अन्तिम चरण
बना एक नया रिश्‍ता फेसबुक मित्र का
31 जुलाई से 01 अगस्‍त 2014

31 जलाई को प्रात: ही पल्‍लव जी ने हमें जगाया, स्‍नान इत्‍यादि के बाद पल्‍लव जीे के साथ बैठ कर नास्‍ता किया और पल्‍लव जी ने हमें ज्‍वालापुर टैक्‍सी स्‍टैन्‍ड पर अपनी बाइक से छोडा हम वहा से मंशा देवी दर्शन करने पहुँचे रोपवे द्वारा मंसा देवी दर्शन के बाद हम ऋषीकेश चले गये वहा विष्‍णू मंदिर,गीता मंदिर राम एवं लक्ष्‍मण झूला दर्शन करने के बाद सीधे हम पल्‍लव जी के कार्यक्रम में भाग लनेे उनके घर आये वहा कार्यक्रम शुरू हो चुका था। पल्‍ल्‍व जी ने अपने मित्रो से हमारा परिचय फेसबुक कवि मित्र के रूप में दिया और सबने इस रिश्‍ते को काफभ्‍ गर्मजोशी से स्‍वीकार किया ये मेरे लिये एक नया अनुभव था। उसके बाद आदरणीय पल्‍ल्‍व जी के परिजन हमें नवजात शिशु एवं परिवार के अन्‍य सदस्‍य से मिलाने लेगये काफी प्‍यारी बच्‍ची थी पल्‍ल्‍व जी के पूरे परिवार का व्‍यवहार खास तैार से नयोडा से आये उनके साले और उनकी भतीजी का व्‍यवहार काफी सरल था मै पूरे जीवन पल्‍लव जी के परिवार का आभारी रहॅूगा। खाना इत्‍यादि खिला कर पल्‍व जी ने हमें हरिद्वार रेलवे स्‍टेशन तक जाने की व्‍यवस्‍था किया और मैं वहा से उपासना एक्‍सप्रेकस द्वारा अपने घर आगया इस प्रकार मेरी दस दिन की यात्रा समाप्‍त हुई

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Comment by Akhand Gahmari on August 8, 2014 at 5:35pm

प्रणाम स्‍वीकार करें आदरणीय सौरभ पाडें जी, आपके सुझाव के पर भविष्‍य में विशेष ध्‍यान

Comment by Akhand Gahmari on August 8, 2014 at 5:33pm

प्रणाम स्‍वीकार करें आदरणीया seemahari sharma जी

Comment by Akhand Gahmari on August 8, 2014 at 5:33pm

प्रणाम स्‍वीकार करें आदरणीया राजेश कुमारी जी

Comment by Akhand Gahmari on August 8, 2014 at 5:32pm

प्रणाम स्‍वीकार करें आदरणीय लक्ष्‍मण प्रसाद लाडीवाल जी

Comment by Akhand Gahmari on August 8, 2014 at 5:32pm

प्रणाम स्‍वीकार करें आदरणीय ज्‍वाला प्रसाद सिंह जी

Comment by Akhand Gahmari on August 8, 2014 at 5:31pm

प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीया आशा शैली जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 12:59am

भाई, आपकी यात्रा के बहाव में हम भी बहते रहे. अच्छी यात्रा हुई हमारी भी. पल्लवजी से हुई आपकी मुलाकात कई विन्दुओं पर रौशनी डालती है. आप उनकी काबिलियत से वाकिफ़ अवश्य हुए होंगे.

इस ज्ञानवर्द्धक वृतांत केलिए हार्दिक धन्यवाद, भाई अखण्डजी.


एक सुझाव : आगे से पोस्ट करने के पहले लिखे हुए को एक दफ़ा अवश्य दुहरा लिया करें. 

Comment by seemahari sharma on August 4, 2014 at 9:41pm
बहुत रोचक यात्रा वर्णन। बधाई बाबा बर्फानी के दर्शन के लिये
आ.पल्लव जी को साधुवाद कहना आवश्यक लग रहा है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2014 at 8:30pm

आपकी यात्रा काफी रोचक रही अच्छे अच्छे फेसबुक मित्रों से भी मिले आ० पल्लव जी से आप मिले अच्छा लगा जानकार ,आपकी यात्रा पढ्ते -पढ़ते ऐसा लग रहा था मानो हम भी यात्रा कर रहे हैं जो इस संस्मरण की खूबी है शुरू से अंत तक रोचकता बनी रही |बधाई आपको की आप सकुशल बाबा बर्फानी के दर्शन कर घर वापस आ गए |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 4, 2014 at 1:53pm

सुधि मित्रों के कोई न कोई सहयोगी मित्र मिल ही जाते है आपके यात्रा के सस्मरण से यह बात और बलवती हुई है | बचपन में कहानी 

पढ़ी थी कि इन्सान को हर शहर में अपना ठिकाना बनाना चाहिए उसका मतलब यही था की आप के सुधि मित्रों के साथ हर जगह 

संपर्क बने | आपकी सफल यात्रा वृत्तान्त पढ़कर ख़ुशी हुई श्री अखंड गहमरी जी 

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