सुरेश रात-दिन कितनी भी शरीर-तोड़ मेहनत कर ले, अपनी पत्नि रजनी और दोनों बच्चों के खर्च के साथ-साथ मोबाईल, मोटर-साइकिल,मकान का किराया सब कुछ वहन नहीं कर सकता. अब पेट काटकर धीरे-धीरे अपना घर बनाना शुरू तो कर दिया पर कभी सीमेंट ख़त्म, तो कभी लोहा.
लेकिन.. जब से सुरेश से कहीं ज्यादा कमाने वाले मित्र, अशोक का उसके यहाँ आना-जाना शुरू हुआ है, तब से घर का काम दिन दोगुना -रात चौगुना चल रहा है. आजकल तो सुरेश अपने घर के बंद दरवाजे के बाहर अशोक के जूतों को देख, अपने नए बन रहे घर कि ओर चला जाता है..
जितेन्द्र 'गीत'
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
जी आदरणीय सौरभ जी. आपका पुन: आभारी हूँ
सादर!
//लेखन के प्रति आपकी संतुष्टि व् स्नेहभरी प्रतिक्रिया का यह रूप मैं अभी तक नही देख पाया था, //
पहले कैसे देख पाते आप, जबकि आपने लिखना ही अब शुरु किया है !!
पुनः, आप पर अब महती दायित्व है, भाई जितेन्द्रजी.
भाई लोग लखनकर्म के दौर में आये इन्हीं मोड़ों से बहकने लगते हैं. सो, देखियेगा ! अनावश्यक स्माइलियों के साथ नहीं, चैतन्य गंभीरता के साथ.
शुभ-शुभ
आपकी प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय विजय मिश्र जी. आपके विचारों से सहमत हूँ, विषय ओछा ही है किन्तु सत्य है
सादर!
रचना पर आपके आशीर्वाद से रचना धन्य हुई आदरणीय लक्ष्मण जी. आप बिलकुल सही कह रहे हैं आजकल खोखली वाहवाही के सिवाय कुछ भी नही है
सादर!
आदरणीय सौरभ जी. लेखन के प्रति आपकी संतुष्टि व् स्नेहभरी प्रतिक्रिया का यह रूप मैं अभी तक नही देख पाया था, अत: प्रतिउत्तर में.... :-))
आपके मार्गदर्शन से हमेशा मुझे कथ्य व् शिल्प में सुधार और कसावट बरकरार रखने को प्रेरित किया है, और यह सब कुछ आप सभी सुधिजनो के मार्गदर्शन व् सुझाव से मिला है.
आपका ह्रदय से आभारी हूँ, आपकी शुभकामनाये शिरोधार्य है सर
सादर!
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हमेशा मुझे मनोबल प्रदान करती है आदरणीय गिरिराज जी, आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!
आपकी शुभकामनाएं सर आँखों पर, आदरणीय रवि जी. आपके स्नेह,मार्गदर्शन के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!
यहाँ सुकून की कोई परवाह नही है, बस सफलता मिलनी चाहिए. रचना पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका आभारी हूँ
सादर!
ऐसे संस्कारों में पले लोग मेरे हिसाब से दया के ही पात्र है | हमारा सामाजिक दायित्व कुछ नहीं रह गया लगता है जो इस
भौतिक वादी सोच से और दयनीय होते जा रहे अपने ही समाज को परिवारों की स्थिति की ओर आँख मूंदे हुए है और
सामाजिक मंचो पर तथाकथित वाहवाही लूटते रहते है | साथ ही अशोक जैसे मित्र को देखिये | मित्रता कैसी ? और क्यों ?
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