For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

( ग़ज़ल )पर यहीं पर करार सा है कुछ -- गिरिराज भंडारी

2122    1212  22 /112  

पर यहीं  पर करार सा  है कुछ

****************************

उजड़ा  उजड़ा दियार सा है कुछ

पर यहीं  पर करार सा  है कुछ 

 

गर्मियाँ  खून  में  कहाँ  बाक़ी

गर्म हूँ , तो बुखार सा  है कुछ

 

खूब बोले थे खुल के, क्यूँ आखिर

बच गया फिर, उधार सा है कुछ

 

दिल को  बेताबियाँ नहीं  डसतीं

प्यार है, या कि प्यार सा है कुछ

 

फूल कलियों में  खूब  चर्चा  है

अब ख़िंज़ा मे उतार सा  है कुछ

 

टीस कहती है मुझ से रह रह के

कोई अपना  ही ख़ार सा  है कुछ

 

दोस्त,  संजीदगी  से   मत  लेना

बस कि निकला ग़ुबार सा है कुछ

*******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 673

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 4, 2014 at 7:11am

आ. सौरभ भाई , गज़ल को आपका अनुमोदन मिलना संतोष कारी है , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 4, 2014 at 7:09am

आ. धर्मेन्द्र भाई , आपकी सराहना ने मेरा उत्साह दोबारा कर दिया । सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 1:29am

एक अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय गिरिराजभाईजी...

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 2, 2014 at 8:48pm

अच्छी ग़ज़ल हुई  है आदरणीय गिरिराज जी। दिली दाद कुबूल कीजिए।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2014 at 9:56am

आदरणीय भुवन भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के ल्लिये आपका आभारी हूँ ||

Comment by भुवन निस्तेज on August 1, 2014 at 11:56pm

वाह आदरणीय, छा से जाते हैं आप ! बधाई कबूल करें...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 31, 2014 at 8:47pm

आदरणीय मदन मोहन भाई , ग़ज़ल की सराहना केलिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by Madan Mohan saxena on July 31, 2014 at 12:25pm

फूल कलियों में खूब चर्चा है
अब ख़िंज़ा मे उतार सा है कुछ

टीस कहती है मुझ से रह रह के
कोई अपना ही ख़ार सा है कुछ

बहुत सुन्दर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 31, 2014 at 7:34am

आदरणीय वीनस भाई , बहुत दिनों बाद आपको देख कर अच्छा लगा | आपकी सराहना के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया ||


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 31, 2014 at 7:32am

आदरणीय नादिर खान भाई , हौसला अफजाई के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service