खिली रातरानी यहाँ,हुई रुपहली रात!
कानों में आ फिर कहो,वही प्यार की बात !!
अधरों से बातें करें,नयनों से आदेश!
घायल कर जाती सदा,झटके जब वे केश !!
कर में कर लेकर किया,हमने यूँ अनुबंध!
खिला रहे फूले फले,प्यारा मृदु सम्बन्ध !!
वही रुपहली रात है,सुन्दर सुखद प्रभात!
लेकिन तुम बिन हो प्रिये,किससे मन की बात !!
दीवाना कुछ यूँ हुआ,न दिवस दिखे न रात !
खुद से ही करने लगा,बहकी बहकी बात!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बढिया प्रयास हुआ है. शुभकामनाएँ
उत्साह वर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण जी। … सादर
सुझाव के लिए हार्दिक आभार आदरणीय गोपाल जी। … सादर
हार्दिक आभार भाई जीतेन्द्र जी। … सादर
आ0 भाई राम सिरोमणी जी प्रेमपगे लाजवाब दोहों के लिए बहुत बहुत बधाई ।
प्रिय
दोहे के सम चरण की रचना 4+4+3 या 3+3+2+3 होती है इस लिहाज से ' न दिवस दिखे न रात ' में प्रथम न उच्चारण में 'ना ' हो जाता है i इसे यदि 'दिवस दिखे नहि रात ' करे तो 3+3+2+3 का संगठन पूरा हो जाएगा i
बहुत ही सुंदर दोहावली, बधाई आदरणीय राम शिरोमणि जी
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