For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


सामने

द्वार के
तुम रंगोली भरो   
मैं उजाले भरूँ
दीप ओड़े हुए.. .

क्या हुआ
शाम से
आज बिजली नहीं
दोपहर से लगे टैप बिसुखा इधर
सूख बरतन रहे हैं
न मांजे हुए
जान खाती दिवाली अलग से,
मगर --
पर्व तो पर्व है
आज कुछ हो अलग
आँज लें नैन
सपने सिकोड़े हुए... .

क्या हुआ
हम दुकानों के काबिल नहीं
भींच कर मुट्ठियाँ
क्या मिलेगा मगर !
मैं कहाँ कह रहा--
हम बहकने लगें ?
पर,
कभी तो जियें
ज़िन्दग़ी है अगर.. !
नेह रौशन करे
’मावसी साँझ को,
हम भरोसों भरें
भाव जोड़े हुए.. .
************************
--सौरभ

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 951

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 13, 2013 at 11:00pm

आदरणीय विजय जी.. आपकी मुखर प्रतिक्रिया से यह नवगीत पुनः प्राणवान हुआ है.

सादर आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 13, 2013 at 10:57pm

आदरणीया मोहिनी जी.. आपको रचना पसंद आयी, यह मेरे लिए भी सुखकारी है..

सादर

Comment by vijay nikore on November 6, 2013 at 4:59pm

सुंदर भावों से सुसज्जित रंगोली .....

//तुम रंगोली भरो   
  मैं उजाले भरूँ
  दीप ओड़े हुए.. .//

 

 

//सूख बरतन रहे हैं
  न मांजे हुए
//

 

 

//क्या हुआ
  हम दुकानों के काबिल नहीं
  भींच कर मुट्ठियाँ
  क्या मिलेगा मगर !
//

 

 

//कभी तो जियें
  ज़िन्दग़ी है अगर.. !
//

इस भाव-प्रधान नवगीत के लिए आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय सौरभ जी।

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2013 at 10:10am

आदरणीया राजेशजी, आपको प्रस्तुत गीत की भावदशा भली लगी इसका होना सार्थक हुआ. हृदय से धन्यवाद .. .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2013 at 10:09am

आदरणीय बन्धुवर, आपका अनुमोदन सुखकारी है.

हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2013 at 10:08am

भाई वैद्यनाथ सारथीजी, प्रस्तुत गीत आपके पाठक को प्रभावित कर पाया यह इसकी सफलता है. हार्दिक धन्यवाद

Comment by mohinichordia on November 2, 2013 at 8:27am

 नेह रोशन कर मावसी सांझ को .... बहुत सुन्दर आ. सौरभ पाण्डेय जी |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2013 at 6:02am

आदरणीया प्राचीजी, आप सभीने तो इस नवगीत को लखनऊ के ओबीओ काव्य-सम्मेलन में सुना है. उस लिहाज़ से इस नवगीत का होना अलग ही भाव सामने कर रहा होगा. लेकिन काव्य विधान इसे संसुस्त करे, यही रचनाकर्म का मूल होगा.
आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार. शंका-समाधान वाला पहलू वाकई इस गीत की विशिष्टता है.
सादर
 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2013 at 5:57am

आपके अनुमोदन के लिए हृदय से आभारी हूँ, आदरणीय राजेशजी.
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 28, 2013 at 8:42pm

सामने

द्वार के 
तुम रंगोली भरो   
मैं उजाले भरूँ 
दीप ओड़े हुए.. .वाहहह --- जहाँ नेह के दीप द्वारों पर जले प्रीत की रंगोली सजे ,जीवन में परेशानियों से उपजा  कटुता का तिमिर भी ज्योतित हो उठेगा,यही भावना सच्ची दीवाली की, पर्वों की खुशियों की हक़दार है,इन भावों को जीती आपकी ये रचना भी प्रशंसा की हक़दार है,बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
12 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service