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कितने किस्से गढ़े गए

गूलर के फूल पर

कितने लोगों ने

भगवान से प्रार्थना की

कि काश उन्हें गूलर का फूल मिल जाए

और उनका धन कभी खत्म ना हो

चाहे वो कितना भी खर्च करें।

 

पर वो बेचारा फूल

फल के अन्दर बन्द

खुली हवा में साँस लेने को भी तरसता रहा

कीड़ों ने उसे अपना घर बना लिया

और उसकी खुशबू

उसका पराग लूटते रहे

 

वो भगवान से प्रार्थना करता रहा

अगले जन्म में मुझे कुछ भी बनाना

पर गूलर का फूल मत बनाना।

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Comment

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Comment by Raju on January 13, 2011 at 8:18pm
bahut hi sundar bhaw hai is kavita me........

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 13, 2011 at 8:14pm
गुलर के फूल को आपने आवाज दे दिया है धर्मेन्द्र जी , आतंरिक वेदना को जिस तरह से आपने स्पर्श किया है वो तारीफ़ के लायक है , बधाई इस कृति पर |
Comment by satish mapatpuri on January 13, 2011 at 4:13pm

अगले जन्म में मुझे कुछ भी बनाना

पर गूलर का फूल मत बनाना।

 

धर्मेन्द्र जी, धन्यवाद. गुलर के फूल की चाह को आपने बड़े ही खुबसूरत तरीके से कलमबद्ध किया है.
Comment by baban pandey on January 13, 2011 at 2:49pm

बड़ी वेदना है ...गुलर के फुल में //

सुंदर भाव

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