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ग़ज़ल -निलेश 'नूर' $अगर राधा न बन पाओ बनो मीरा मुहब्बत में$

१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
**

हुआ है तज्रिबा मत पूछ हम को क्या मुहब्बत में,........पहले तज़ुर्बा लिखा था जो गलत था .. अत: मिसरे में तरमीम की है. 

लगा दीदा ए तर का आब भी मीठा मुहब्बत में.
**

जो चलते देख पाते हम तो शायद बच भी सकते थे,
नज़र का तीर दिल पे जा लगा सीधा मुहब्बत में.
**

ख़ुमारी छाई रहती है, ख़लिश सी दिल में होती है,      
अजब है दर्द जो ख़ुद ही लगे चारा मुहब्बत में.
**

रवायत आज भी भारी ही पड़ती है मुहब्बत पर,
ज़माना जीत जाता है यही सीखा मुहब्बत में.
**

कहा उसने न मेरी अब गली में तुम कभी आना,
मुडा ऐसे, न उसका गाँव फिर देखा मुहब्बत में.
**

ख़ुदा तुम को समझता हूँ, मुहब्बत दीन है मेरा,
भला बन्दे से करता है ख़ुदा पर्दा मुहब्बत में?? 
**

कहेगा जिस्म से आगे, बहुत आगे की बातें ‘नूर’
अगर राधा न बन पाओ बनो मीरा मुहब्बत में.   
****************************************************
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निलेश 'नूर'
मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 779

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 19, 2013 at 2:45pm

आदरणीय अजय जी, नीरज जी,
आप की स्नेह वर्षा से मन भीग गया है. मेरा प्रयास रहेगा की इस मंच के माध्यम से मै और भी बेहतर रचनाएं रच सकूँ और आप की नज्र कर सकूँ ..
आभार  

Comment by Neeraj Neer on October 19, 2013 at 8:48am

कहा उसने न मेरी अब गली में तुम कभी आना, 
मुडा ऐसे, न उसका गाँव फिर देखा मुहब्बत में...

बहुत खूब .. दाद क़ुबूल करें 

Comment by ajay sharma on October 18, 2013 at 11:11pm

रवायत आज भी भारी ही पड़ती है मुहब्बत पर,
ज़माना जीत जाता है यही सीखा मुहब्बत में.     WAH WAH 

कहेगा जिस्म से आगे, बहुत आगे की बातें ‘नूर’
अगर राधा न बन पाओ बनो मीरा मुहब्बत में.    GLORIOUS 

Comment by ajay sharma on October 18, 2013 at 11:11pm

....sach kahoo .....ab tak ki uplabdh rachnayon me  ....mujhe vaktigat taur par ye gazal behad bhayii .....aise ki jyo koi nadi bah rahi ho....ki jaise lafzo ko ik dusre se badi mohabaat aur laykari ke saath piroya gaya hai ....dili mubaraqbaad qubool farmaye ........janab nilesh ji.........jai ho .....

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 17, 2013 at 11:16pm

आदरणीय वीनस जी के मशविरे से थोड़ी तरमीम की है, मतले के मिरसा -ए -ऊला में ... उसे अब यूँ पढ़ें ..
.

हुआ है तज्रिबा मत पूछ हम को क्या मुहब्बत में...
.
धन्यवाद ..

 

 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 17, 2013 at 10:48pm

बहुत बहुत धन्यवाद सभी मित्रों को . आदरणीय वीनस जी के सुझाव पर ध्यान देतें हुए मै प्रयत्न करूँगा की कोई अन्य शब्द खोज सकूँ.
वीनस जी के कमेंट्स रुपी स्पर्श से ये ग़ज़ल पुन: अहिल्या हो गई है.
आभार आदरणीय  

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 17, 2013 at 10:43pm

 निलेशजी बधाई इस सुंदर गज़ल के लिए ।

Comment by वीनस केसरी on October 17, 2013 at 10:06pm

इन चार अशआर के लिए दिल से दाद क़ुबूल फरमाएं ,,, बेहद शानदार

तज़ुर्बा पूछ मत हम को हुआ क्या क्या मुहब्बत में,
लगा दीदा ए तर का आब भी मीठा मुहब्बत में

जो चलते देख पाते हम तो शायद बच भी सकते थे,
नज़र का तीर दिल पे जा लगा सीधा मुहब्बत में.

ख़ुदा तुम को समझता हूँ, मुहब्बत दीन है मेरा,
भला बन्दे से करता है ख़ुदा पर्दा मुहब्बत में?? 

कहेगा जिस्म से आगे, बहुत आगे की बातें ‘नूर’
अगर राधा न बन पाओ बनो मीरा मुहब्बत में. 

तजुर्बा १२२
= शुद्ध - तज्रिबा २१२

Comment by Sushil.Joshi on October 17, 2013 at 8:47pm

ख़ुमारी छाई रहती है, ख़लिश सी दिल में होती है,      
अजब है दर्द जो ख़ुद ही लगे चारा मुहब्बत में........... वाह वाह.... बहुत उम्दा शेर है....

कहेगा जिस्म से आगे, बहुत आगे की बातें ‘नूर’
अगर राधा न बन पाओ बनो मीरा मुहब्बत में............. सत्य कहा आदरणीय नीलेश जी..... बधाई इस खूबसूरत गज़ल के लिए...  

Comment by Saarthi Baidyanath on October 17, 2013 at 5:36pm

जो चलते देख पाते हम तो शायद बच भी सकते थे,
नज़र का तीर दिल पे जा लगा सीधा मुहब्बत में.

कहेगा जिस्म से आगे, बहुत आगे की बातें ‘नूर’
अगर राधा न बन पाओ बनो मीरा मुहब्बत में.......आदरणीय ,इन दो अशआरों के लिए दिली मुबारकबाद ! कमाल हो गया जी ..वाह :)

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