For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने-६९ (तरुणावस्था-१६)

(आज से करीब ३१ साल पहले: साहित्य और आध्यात्म)

 

मैट्रिक की परीक्षा शेष होने के बाद के खालीपन में मैं अक्सरहा या तो हिंदी साहित्य की किताबे पढ़ने लगा हूँ या अध्यात्म की. दोनों ही तरह की किताबों की कोई कमी नहीं है हमारे घर में. ये मुझे मेरे नाना, मेरे पिता, मेरे मंझले चाचा, एवं मेरे बड़े भाई जो मुझसे उम्र में करीब १३-१४ साल बड़े हैं, से विरासत में मिली हैं. साहित्य में जहां टैगोर, शरतचंद्र, प्रेमचंद्र, टॉमस हार्डी जैसे कथाकारों की किताबें भरी पडी हैं वहीं अध्यात्म एवं दर्शन में वेद और पुराण से लेकर रजनीश तक की किताबें.

 

किताबें मुझे एक अलग ढंग से आकर्षित करती हैं जिसे व्यक्त करना मुश्किल है. उनमें एक विशेष महक होती है. पुरानी किताबों की अलग और नई किताबों की अलग. नई किताबों में जहां अपरिचित के कल्पित सौन्दर्य का आकर्षण बसा लगता है वहीँ पुरानी किताबों के पन्ने पलटते ऐसा प्रतीत होता है गोया हम किसी व्यक्ति, परिवार, अथवा समुदाय के जीवन के अन्तरंग प्रसंगों से गुज़र रहे हों. पूरे बदन में सिहरन सी पैदा हो जाती है कभी कभी.  

 

अध्यात्म की किताबों को पढ़ते पढ़ते मैं ध्यान करने की चेष्टा करने लगा हूँ. अकेलेपन में मैं अक्सरहा अपने आप से भी बाते करने लगा हूँ. आज भी कुछ ऐसा ही हुआ और मेरे अन्दर आत्यंतिक विचारों का एक रेला सा उमड़ पड़ा:

 

‘मेरे जीवन का एकमात्र ध्येय मोक्ष है. हम सबों के जीवन का ध्येय भी तो यही है. हम मोक्ष रूपी साध्य की अभिप्राप्ति हेतु धर्म की राह पे आगे बढ़ते हैं. इसका सीधा अर्थ है कि धर्म साधन मात्र के भाव से अंगीकार्य है. मुझे ऐसा लगता है कि धार्मिक होना और मुमुक्षु होना- दो अलग अलग बाते हैं. जो सिर्फ धार्मिक हैं उन्होंने धर्म को ही साध्य समझ लिया है और धर्म की गलियों में खो गए हैं. वे एक तरह से पाखण्ड और दिखावटीपन के मरीज़ बन के रह गए हैं. मुल्लाओं, पंडों, एवं पादरियों में से अधिकाँश को इस निकष पे कस के देखा जा सकता है. हमारी गृहिणियां भी इसका एक अन्य ज्वलंत उदाहरण हैं’.

 

मुझे पूरा विश्वास है कि जो मुमुक्षु हैं वो धार्मिक भी हैं और मनुष्यत्व के सच्चे अधिकारी भी.   

 

© राज़ नवादवी

गुरुवार, २७/०५/१९८२, जमशेदपुर  

'मेरी मौलिक व अप्रकाशित रचना'

Views: 547

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on September 20, 2013 at 4:32pm

आदरणीया महिमा जी, आपके विचारों से अवगत होकर अच्छा लगा. आपके उत्सावर्धन का हार्दिक धन्यवाद! 

Comment by MAHIMA SHREE on September 18, 2013 at 11:43pm

जो सिर्फ धार्मिक हैं उन्होंने धर्म को ही साध्य समझ लिया है और धर्म की गलियों में खो गए हैं. वे एक तरह से पाखण्ड और दिखावटीपन के मरीज़ बन के रह गए हैं. मुल्लाओं, पंडों, एवं पादरियों में से अधिकाँश को इस निकष पे कस के देखा जा सकता है. हमारी गृहिणियां भी इसका एक अन्य ज्वलंत उदाहरण हैं’..... चिंतन मनन से हमेशा सच्चाई निखर के सामने आती है ... और ये सच्चाई आपकी डायरियो में हमेशा परिलक्षित होती है ... बधाई आदरणीय राज नवादवी जी

Comment by राज़ नवादवी on September 16, 2013 at 5:29pm

आदरणीय अरुन जी, प्रस्तुति को पसंद करने का दिल से आभार. आपके विचारों से अवगत हुआ. 

Comment by राज़ नवादवी on September 16, 2013 at 5:28pm

आदरणीया राजेश जी, आपके उत्साहवर्धन का हार्दिक धन्यवाद! आपके विचारों को जानकार खुशी हुई.

Comment by राज़ नवादवी on September 16, 2013 at 5:27pm

आदरणीय भंडारी जी, आपको लेखनी पसंद आई, ये जानकार अच्छा लगा.  ख़याल साझा करने का तहेदिल से शुक्रिया. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2013 at 12:16pm

आदरणीय राज भाई , आपने मेरे हिसाब से भी सही  व्याख्या की है , हर मुमुक्षु धार्मिक जरूर होगा लेकिन धार्मिक मुमुक्षुभी हो ज़रूरी नही  है !!!    धर्म वो व्यवहार सिखाता है जिसे अपना कर हम मुमुक्षु बन सकें और साधना रत हो कर अंतिम लक्ष्य मोक्ष तक पहुंच सकें

!!! बहुत बधाई !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 16, 2013 at 11:37am

जो सिर्फ धार्मिक हैं उन्होंने धर्म को ही साध्य समझ लिया है और धर्म की गलियों में खो गए हैं. वे एक तरह से पाखण्ड और दिखावटीपन के मरीज़ बन के रह गए हैं---

मुझे पूरा विश्वास है कि जो मुमुक्षु हैं वो धार्मिक भी हैं और मनुष्यत्व के सच्चे अधिकारी भी. --

आपकी बात शत प्रतिशत सही हैं आदरणीय राज़  जी सच्चा धर्म हमेशा अहिंसा और एकता का पाठ पढाता है जिसमे ये गुण हैं वही सच्चा धर्मी है वरना सब ढोंगी पाखंडी हैं मैं भी यही मानती हूँ ,बहुत अच्छी बात लिखी है आपने दिली बधाई आपको   

 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 16, 2013 at 11:26am

आदरणीय राज सर आपके विचार और आपके शब्द काफी कुछ कह रहे हैं बस समझने भर की देर है, आपकी डायरी के पन्ने कदाचित मैं पहली बार पढ़ रहा हूँ और पढ़कर निःशब्द हूँ क्या कहूँ जितनी किताबें पढ़ी हैं शायद उनसे से आधी किताबों के बारे में मैं कुछ नहीं जानता होऊंगा. हार्दिक आभार आपने आपकी इस रचना से अधिक से अधिक पढ़ने की प्रेरणा मिलती है. इस प्रस्तुति के लिए आपको बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
15 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
17 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service