For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भाई जी ईद मुबारक!!!---(लघुकथा )

"मीता देखो अभी वक़्त है फैसला बदल लो, ईद का दिन है कहीं कुछ भी हो सकता है.. फ्लाईट से चलते हैं.."

"नहीं पहले प्रोग्राम के अनुसार ही चलते हैं",  मीता अपने पति से बोली, "देखो आते वक़्त जम्मू से श्री नगर के रास्ते की कितनी खूबसूरत यादें हमारे कैमरे में बंद हैं ! जाते वक़्त भी जो जगह छूट गई थी.. उनकी तस्वीरें भी कैद करुँगी,  ईद के दिन कश्मीर कैसा लगता है.. देखना चाहती हूँ.. देखो कैसा दुल्हन की तरह सजा है.. लोग बड़े बूढ़े बच्चे स्त्रियाँ कितने सुंदर लिबास में सजे धजे घूम रहे हैं, इस ख़ूबसूरती को अपनी यादों की डायरी में लिखना चाहती हूँ ।"

क्लिक क्लिक क्लिक के साथ सफ़र जारी था कि अचानक जैसे ही गाड़ी ने किश्त्वाडा में प्रवेश किया, सड़क पर रंग बिरंगी पोशाकों में लोगों का हुजुम देख धीरे हुई.  मीता की आँखे एक बार को चमक उठी कि चलो इस ईद के जश्न को आराम से कैमरे में कैद करुँगी.  इतने में एक आदमी बदहवास सा खिड़की के पास आकर घूरने लगा.

मीता ने कहा, "भाई जी ईद मुबारक !!.."

"चले जाओ नहीं तो पेट की अंतड़ियां बाहर निकाल के रख दूंगा.."  और जैसे ही उसने एक धारदार हथियार बाहर निकाला ड्राइवर ने गाडी की रफ़्तार बढ़ा दी. थोड़ी दूरी पर ही पुलिस ने गाडी का रास्ता डाइवर्ट कर दिया जो एक गाँव से होता हुआ आगे जाकर हाइवे से मिला. जम्मू रेल्वेस्टेशन पर पंहुच कर भीड़ का सैलाब देख कर मीता दंग रह गयी. थोड़ी देर बाद पता चला कि लोग हजारों की संख्या में जम्मू से पलायन कर रहे हैं और किश्तवाडा में कई लोग मर चुके हैं. सब ओर कर्फ्यू लग चुका है.

यह सुनकर मीता ने हाथों से अपनी आँखें बंद कर ली. पति ने पूछा,  "तुम सोच रही हो ना..कि मेरी बात ना मानकर तुमने गलती की..?"

"नहीं.. मैं सोच रही हूँ कि जिस अल्लाह की खातिर एक महीने तक उपवास रख कर ये पाक पर्व मनाया जाता है, क्या उसमें इस कत्ले आम के लिए ख़ुदा इजाजत देता है ?..  क्या यही धर्म होता है??.."

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 821

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2013 at 3:14pm

वसुंधरा पाण्डेय जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया रचना को सार्थकता प्रदान कर रही है 

Comment by Vasundhara pandey on August 27, 2013 at 11:52am

झिंझोड़ दिया लघु कथा ने...आदरणीया राजेश जी बहुत-बहुत बधाई...!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 27, 2013 at 11:41am

आदरणीय सौरभ जी सच कहा ये धर्म नहीं है ये अंधी राजनीति के कुत्सित षड्यंत्रों के परिणाम है जिसको आज आम नागरिक भोग रहा है दिलों में वैमनस्य का बीज डालकर अपनी जड़ें मजबूत करते हैं इनको किसी की जान या इज्जत की कहाँ परवाह है
रचना पर आपके विचार पढ़ कर अच्छा लगा दिल से आभारी हूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 27, 2013 at 3:06am

ये धर्म है ? नहीं.. . यह कुत्सित राजनीति का अवैध प्रतिफल है जो हम सब का भोगा हुआ यथार्थ होता जा रहा है !

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 26, 2013 at 11:46am

विजय मिश्र जी आपने सही कहा कोई धर्म इसकी इजाजत नहीं देता कथा के मर्म का अनुमोदन करने हेतु हार्दिक आभार आपका |

Comment by विजय मिश्र on August 26, 2013 at 11:39am
यह धर्म नहीं अनैतिक अपकर्म है , कुकर्म है . जाहिलपन है , वहशियाना हरक्कत है जो किसी धर्म और मजहब को क़ुबूल नहीं .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 26, 2013 at 10:49am

मीना पाठक जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका 

Comment by Meena Pathak on August 26, 2013 at 10:10am

जायज प्रश्न, कोई भी धर्म किसी की जान लेने की इजाजत नही देता और आतंकियों का कोई धर्म नही होता |  सार्थक लघुकथा, बधाई स्वीकारें 

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2013 at 10:38pm

शुभ्रांशु पाण्डेय जी रचना के मर्म को व् सरोकार को  आपने सही पकड़ा है इससे अधिक कुछ नहीं कह पाउंगी बस कहानी के माध्यम से लोगों का मंतव्य /पक्ष जानना चाहती थी ,फिलहाल रचना पर  आपके  विश्लेषण के लिए दिल से आभारी हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2013 at 10:33pm

आदरणीय शिज्जू जी आपका कहना सही है जो सच्चा मुसलमान होगा वो किसी की जान नहीं लेगा क्यूंकि कुरआन शरीफ में कहीं भी हिंसा या क़त्ल को जायज नहीं ठहराया गया ,किन्तु ये हो रहा है कहीं तो गड़बड़ है ये खून क्या दुसरे रंग का हो गया जिसमे इंसान इंसान को कीड़े मकोड़े की तरह मार देता है इसका मजहबी तकरार/ बवाल का जिम्मेदार अधिकतर हमारा प्रशासन ही है जिसको अंग्रेजों की वो चाल अच्छी तरह समझ में आती है की डिवाइड एन्ड रूल ,आपने रचना को सराहा इस विश्लेषण  के लिए दिल से आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service