For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काश! 

आरजू मै करु मिलने की, और वो रुबरु हो जाये ।

काश ! मेरी मोहब्बत की, ऐसी तासीर हो जाये ।।

न शिकवा ना शिकायत हो कोई भी खुदा से ।

काश!  ऐसा हर कोई खुश नसीब हो जाये ।।

 

बेखौफ चूमते है भँवरे, गाल कलियो के ।

काश ! तेरी भी हमको इजाजत हो जाये ॥

बेशक ! माना की गहना है तेरा ये परदा ।

काश ! आज थोडी सी तू बेशर्म हो जाये ॥

मिले यूँ ही कई लोग, चलते चलते मुझको ।

काश ! आज उनसे भी  मुलाक़ात हो जाए ।।

बहुत गुजारे है सफर, मैने यूँ ही तन्हा

काश ! आज वो मेरा भी , हमसफर हो जाये॥

 

वो आये तो उनको जाने का, ख्याल न हो ।

काश ! आज फिर वही, पहली रात हो जाए 

हो जाए बंद वो सब राहे जो लौटे इधर से

काश ! आज फिर जोर से, बरसात हो जाये ॥

 

न आये कोई  भी अब दर्मिया हमारे   

काश ! वो मेरे इतना करीब हो जाये ।।

भूल जाए जमाने को हम हो कर तुम्हारे  

काश! वो अब मेरे रकीब  हो  जाए  ।।

 

अब तक तो रखा है, दर्द को दिल मे दबा के ।

काश !  मेरा भी कोई हमदर्द हो जाये ॥

कब तक रोयेंगे हम खुद, को खुद मे छिपा के ।

काश! आज काँधा तेरा मेरे  सिराने हो जाये ॥ 

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 453

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2013 at 3:04pm

इतनी मेहनत कर सकते हैं तोफिर विधासम्मत एवं संयत प्रयास क्यों नहीं करते वसंत भाई जी.

शुभेच्छाएँ.

Comment by बसंत नेमा on July 30, 2013 at 12:01pm

आदरणीय अरुन जी  आप का मुझपे विशवास मेरे लिये सौभाग्य की बात है ....हाँ इस रचना मे थोडी जल्दबाजी हो गई थी ...अब समय का ध्यान रखुंगा ..और आप को अगली बार निराश नही करुंगा ....... धन्यवाद आप ने समय दिया रचना को ..बहुत बहुत शुक्रिया ....

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 30, 2013 at 11:23am

आदरणीय बसंत भाई जी आपसे उम्मीदें तनिक अधिक बढ़ गई हैं आपके द्वारा कहीं अधिक सुन्दर रचना पढ़ चुका हूँ, थोड़ी जल्दबाजी प्रतीत होती है इस रचना में, बहरहाल प्रयास पर ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by बसंत नेमा on July 29, 2013 at 10:24am

आ0 जितेन्द्र जी  रचना आप को पसन्द आई उसके लिये तहे दिल से शुक्रिया ..आभार धन्यवाद 

Comment by बसंत नेमा on July 29, 2013 at 10:23am

आदरणीया लता जी रचना आप को पसन्द आई उसके लिये तहे दिल से शुक्रिया ..आभार धन्यवाद 

Comment by Lata tejeswar on July 28, 2013 at 6:03pm

भूल जाए जमाने को हम हो कर तुम्हारे  

काश! वो अब मेरे रकीब  हो  जाए  ।।

bahut khub

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2013 at 8:10pm

"बेखौफ चूमते है भँवरेगाल कलियो के ।

काश ! तेरी भी हमको इजाजत हो जाये ॥

बेशक ! माना की गहना है तेरा ये परदा ।

काश ! आज थोडी सी तू बेशर्म हो जाये ॥"................आपकी  रचना  में यह पंक्ति बहुत  ही शानदार है , आदरणीय ..बसंत जी सुंदर रचना  पर ढेरों बधाई ....

 

 

Comment by बसंत नेमा on July 27, 2013 at 10:42am

आ0 राम जी धन्यवाद आप को रचना पसन्द आई शुक्रिया .... शायद थोडा समय और देना था रचना को ...

Comment by ram shiromani pathak on July 26, 2013 at 8:46pm

आदरणीय बसंत जी  बहुत सुन्दर भाव हैं रचना के  //हार्दिक बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service