फिर कोई आग बुन
क्यों बुझा- बुझा सा है,फिर कोई आग बुन
छेड़ कर सुरों के तार ,फिर कोई राग चुन ।
गहन अँधेरी रात में.भोर कीआवाज़ सुन
नींद से जाग जरा,फिर कोई ख्वाब बुन ।
मन की हार, हार है,हार में भी जीत ढ़ूँढ़
हौंसला बुलंद कर ,फिर कोई आकाश चुन ।
वक्त रुकता नहीं कभी,वक्त की पुकार सुन
भूल जा कल की बात ,फिर कोई आज बुन ।
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महेश्वरी कनेरी /मौलिक व अप्रकाशित रचना
Comment
सभी मित्र बंधुओ का आभार..
मन की हार, हार है,हार में भी जीत ढ़ूँढ़
हौंसला बुलंद कर ,फिर कोई आकाश चुन ।
आदरणीया सुन्दर पंक्तियों की प्रस्तुति के लिए बधाई !
आदरणीय महेश्वरी कनेरी जी,
ज़िंदगी की राह में चलने , आगे बढने के सकारात्मक चिंतन को शब्द देती अभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर
वक्त रुका नहीं कभी,समय की पुकार सुन
भूल जा कल की बात ,फिर कोई आज बुन ।..............आदरणीया महेश्वरी जी , खूब सूरत पंक्ति ....हार्दिक बधाई
सुन्दर सीख देती हुई अच्छी रचना है
गहन अँधेरी रात में.भोर का आभास सुन
नींद से जाग जरा,फिर कोई ख्वाब बुन ।
बहुत सुन्दर
बहुत बढ़िया, सकारात्मकता भरी रचना पर बहुत बधाई!!
वक्त रुका नहीं कभी,समय की पुकार सुन
भूल जा कल की बात ,फिर कोई आज बुन । ---वाह ! सुन्दर सन्देश तेती प्रस्तुति के लिए बधाई आदरणीया महेश्वरी जी
adarniya apko hardik badhai is anupam rachna ke liye .
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
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