For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

संवेदना के शुष्क तरु
के सानिध्य में,
पुष्प प्रीति के,
ढूंढे जा रहे हैं
आज।
पत्थरों को ईश मान,
मंदिरों में घट बंधा,
घट-जलधार के पास से
पिपासाकुल खग...
भगाए जा रहें हैं
आज।
प्रसाधन-जनित
यज्ञशाला की अग्नि में,
आंच के भय से
आहुति,
सब घटा रहे हैं।
सुना है,देखा नहीं
भगवान औ भूत,दोनों
पर...ईशास्था से अभय
को नकार
भूत में विश्वास कर,
उर काँपते हैं आज।
-विन्दु
(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 632

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on June 13, 2013 at 11:30pm
आदरणीय रक्ताले महोदय आपका हृदयातल से बहुत आभार।
स्नेह बनाए रखें..
सादर
Comment by Ashok Kumar Raktale on June 3, 2013 at 7:54pm

आदरणीया वन्दना तिवारी जी सादर, बहुत ही कटु सत्य को सम्मुख लाने का सुंदर और सफल प्रयास किया है आपने पंक्ति पंक्ति मुग्ध कर रही है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by Vindu Babu on June 2, 2013 at 10:57am

आदरणीय सादर अभिनन्दन्!
महोदय मैंने जो देखा,वही वर्णित करने का प्रयास किया है, श्री शिवपूजन सहाय जी को पढ़ने का सौभाग्य मुझे अभी प्राप्त नहीं हो पाया है। आपने इंगित किया, इसके लिए आपकी बहुत आभारी हूं, अब शीघ्र ही उनके साहित्य तक पहुंचने का प्रयास करूंगी।
आपकी प्रतिक्रिया पाकर मेरा मनोबल बहुत बढ़ा है, आदरणीय आपके आशीष के लिए विनयी हूं।
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2013 at 11:25pm

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंचजगत्यांजगत् .. .  फिरभी विश्वस्वरूप के प्रतीकों के प्रति जो अन्यमनस्कता है उसकी ओर इंगित करने का एक सुगढ़ प्रयास हुआ है, आदरणीया.

शिवपूजन सहाय की कथा ’दरिद्र नारायण’ इसी कथ्य का गद्यस्वरूप थी. 

सामयिक सर्वग्राह्यता को लताड़ देने का एक सार्थक प्रयास हुआ है.

इस प्रयास केलिए बधाई.

Comment by ram shiromani pathak on May 29, 2013 at 4:00pm

आ0 वंदना जी,बहुत ही हृदय स्पर्शी रचना !सुन्दर...बधाई स्वीकार करें 

Comment by Vindu Babu on May 29, 2013 at 3:15pm
आदरणीसा शालिनी जी सादर नमस्कार के साथ आपका बहुत-बहुत स्वागत् और आभार है।
इस बदलाव को क्या नाम दिया जाय,
उन्नति,विकास,आधुनिकता या फिर और कुछ???
सादर
Comment by Vindu Babu on May 29, 2013 at 3:10pm
परम् आदरणीय निकोर सर सादर नमन्!
बिल्कुल विचारणीय विषय है आदरणीय कि जब हम ईश्वर की लौकिक कृति/प्रकृति/स्थिति को नहीं सहेज,संवार और सह पा रहे हैं तो अलोकिक को साधने चल देते हैं??
आपका बहुत आभार। निवेदन है स्नेह बनाए रखिएगा।
सादर
Comment by Vindu Babu on May 29, 2013 at 3:05pm
आदरणीय केवल प्रसाद जी 'बहुत सुन्दर प्रसंग' या 'बहुत दु:खद प्रसंग'???
आप यहाँ पधारे इसके लिए आपका बहुत आभार महोदय।
सादर
Comment by Vindu Babu on May 29, 2013 at 3:02pm
आदरेया कुंती जी यथार्थ कल्पना कविता का उत्तम गुण हो सकता है,पर यह बेढंगी सी रचना का उद्गम 'पूर्णतय: आँखों देखी' से ही हुआ है। आप रचना के मूल तक पहुंची इसके लिए आपका बारम्बार आभार व अभिनन्दन!
आपके आदेश का पालन करते हुए कहना चाहूंगी आदरेया कि जो दृश्य हृदय में धंस नहीं पाते वो लेखनी से उतार देती हूं बस।
एक वाक्य साझा करना चाहूंगी जो इस रचना का कारण बना- ''पानी पीते पीते रोज घड़े का धागा खींच देती है नालायक,(चिड़िया)तो जल धारा रुक जाती है,इतने तालाब नाली न जाने किसके लिए भरे हैं।''
बाकी आप लोग ही बता सकते हैं कि मैं अपनी बात कहने में सफल कहाँ तक हो पाई हूं,जो कुछ इस तरह है-
*हघट बंधाना,यज्ञ-औपचारिकता
खग भगाना-सूखती संवेदना
*प्रसाधन जनित अग्न- लाइटर से उत्पन्न अग्नि उद्यम से पलायनवादिता का लक्षण प्रतीत होता है,परिणाम में अनास्था और हतोत्साह।
*पहले,लकड़ी की रगड़ से उत्पन्न अग्नि-उद्यम जनित उत्साहवर्धक तथा आस्थावर्धक होती थी।
*आँच-सहनशीलता में उत्तरोत्तर कमी
*भूत मे विश्वास भगवान में अविश्वास-आज की नकारात्मता।
Comment by shalini rastogi on May 29, 2013 at 2:15pm

पत्थरों को ईश मान,
मंदिरों में घट बंधा,
घट-जलधार के पास से
पिपासाकुल खग...
भगाए जा रहें हैं
आज।... .... बहुत बड़ा सत्य है है ये आज का ... बहुत ही हृदय स्पर्शी  व विचार पूर्ण रचना !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service