For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

!!! गजल !!!
वज्न- 2122, 1212, 22

ऐ खुदा शहर की अदा क्या है।
आज बन्दा लुटा बता क्या है।।

दिल ने आहट सुना जवां जैसे।
तुम न आए अगर दुवा क्या है।।

जां में उल्फत सनम कसम खाये।
रब न मंजिल यहां मिला क्या है।।

शहर जल कर धुआं-धुआं नभ तक।
फिर न जाने सुबह हुआ क्या है।।

हम मिलेंगे वहां जहां ’सत्यम’।
अब तो नफरत भुला खता क्या है।।

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

Views: 586

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 24, 2013 at 2:25pm

आ0 रक्ताले सर जी,  आपके स्नेहिल आशीष हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 24, 2013 at 2:21pm

आ0 गुरूवर सौरभ सर जी,  आपके स्नेहपूर्ण अपेक्षा भाव दृष्टि हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 24, 2013 at 2:15pm

आ0 अभिनव अरून भाई जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 24, 2013 at 2:13pm

आ0 वीनस भाई जी,  आपके मार्गदर्शन, स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 24, 2013 at 2:09pm

आ0 राज लली भाई जी,  आपके स्नेह और दाद के लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार।    सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 24, 2013 at 2:06pm

आ0 अरून अनन्त भाई जी,  आपका कथन भी सही है...हिन्दी मे.श..1  तथा हर..2 भी माना गया है। जिसकी स्वीकृति भी दी गई है।  आपका एक बार पुनः हार्दिक आभार  क्योकि इस गजल के माध्यम से एक बार फिर महत्वपूर्ण बिन्दु पर चर्चा हुई।    सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 24, 2013 at 8:36am

शहर जल कर धुआं-धुआं नभ तक।
फिर न जाने सुबह हुआ क्या है।।...........वाह बहुत सुन्दर भाव पिरोते इस शेर पर बहुत दाद कुबुलें.

आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर सुन्दर गजल कही है सादर बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2013 at 12:32am

अच्छा तो कभी कभी एक ही बहस दुबार शुरु हो जाती है. :-)))

सही है, वीनस भाई, लिंक के यूआरएल में कुछ अधूरापन है, खुल नहीं रहा.  वैसे मुझे भान हो रहा है कि पिछले मुशाय्ररे की संकलित ग़ज़लों का लिंक आप दे रहे हैं  जहाँ राणा भाई द्वारा शहर शब्द के वज़न को हिन्दी उचचारण के लिहाज से करने की स्वीकारोक्ति है.

सधन्यवाद

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 22, 2013 at 10:51pm

वीनस भाई लिनक्स खुल नहीं पा रहा है, कृपया एक बार लिंक पुनः दे दें यदि संभव हो सके. हार्दिक आभार आपका.

Comment by Abhinav Arun on May 22, 2013 at 9:43am

कभी कभी मैं भी लिखता हूँ तो बात नहीं बनती या बनते बनते रह जाती है पर लिखते रहना और अपने भीतर के  रचनाकार को हौसला देते रहना ज़रूरी है .. फिर अच्छी रचनाएँ निकल आती हैं !! शुभकामनायें !!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service