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मूँगफली खा चच्चा बोले 

बहू आज कुछ चने भिगोले 

कल को रोटी संग बनाना 

जरा चटपटे आलू-छोले l

 

सारा दिन तू काम में पिस्से 

सुने पड़ोसी के भी किस्से 

सखियों से गपशप करती है 

कर देंगी वो घर के हिस्से l

 

मारा बहु ने घर में पोंछा 

मुँह सिकोड़ बातों पर सोचा 

खुद तो इत-उत गप्प लड़ाते  

फिर क्यों मेरा ही मुँह कोंचा l  

-शन्नो अग्रवाल 

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Comment by Ashok Kumar Raktale on March 8, 2013 at 9:00am

आदरणीया सादर, बहुत सुन्दर खट्टी मीठी तकरारें. गाकर मन प्रफुल्लित हुआ. सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:55am

वेदिका जी, रचना आपको बहुत पसंद आयी इसे जानकर मन इतना मुदित है कि बता नहीं सकती :) पर आप लोग कोई गलत अर्थ ना लगायें हर काव्य-रचना का निर्माण कवि के व्यक्तिगत अनुभवों पर नहीं होता. एक लेखक व कवि दुनिया को काल्पनिक आँखों से या दूसरों की आँखों से भी देखता है. मेरे ना तो ससुर जिन्दा हैं और ना ही कोई चचिया ससुर ही थे. और तइया ससुर तो शादी के पहले ही गुजर चुके थे. सो ये सब मेरी कल्पना की ही खुराफात है.  

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:49am

विजय जी, रचना आपको अच्छी लगी इसके लिये आभार सहित धन्यबाद.  

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:47am

प्रदीप जी, आभारी हूँ...रचना पसंद करने का हार्दिक धन्यबाद.  

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:45am

अजय जी, आपका बहुत-बहुत धन्यबाद कि रचना आपको पसंद आयी.  

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:42am

सौरभ जी, इस रचना को कल रात लिखा था...बस यूँ ही कुछ खुराफाती बिचार आकर परेशान करने लगे थे और उन्हें शब्दों में उतार कर सर्वप्रथम ओ बी ओ की अनुमति चाही. प्रेषित करते हुये डर रही थी फिर भी चांस लिया और आप सब की दुआओं से इसे स्वीकृति मिल गयी :) मेरे दिमाग में पता नहीं क्यों इतनी दूर विदेश में बैठे हुये भी भारत के गाँवों के काल्पनिक चित्र क्यों उभर आते हैं. आँखों के आगे घर में हुकुम चलाने वाले बड़े-बूढ़े घूमते नजर आने लगते हैं - कभी खखारते हुये कभी गमछा से पसीना पोंछते हुये तो कभी औरों से बतियाते हुये. 

आपका हार्दिक धन्यबाद कि रचना आपको पसंद आयी. पढ़कर आपका मन मुदित हुआ और मेरा लिखना भी सार्थक हुआ :)  

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:23am

शिरोमणि जी, रचना पसंद करने का हार्दिक धन्यबाद. 

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:22am

लक्ष्मण प्रसाद जी, रचना आपको आनंददायक लगी इसका बहुत-बहुत धन्यबाद. 

Comment by Shanno Aggarwal on March 8, 2013 at 12:19am

प्राची जी, आपने इस काल्पनिक रचना का आनंद लिया ये पढ़कर बहुत खुशी हुई :) आपका हार्दिक धन्यबाद.  

Comment by वेदिका on March 7, 2013 at 10:58pm

वाह! वाह! बहुत ही रोचक घटना का निर्माण हुआ है काव्य रूप में आदरणीया शन्नों जी 

सारा दिन तू काम में पिस्से .. आप की भी बहुत चिंता है उन्हें :)

भले ही उन्होंने आपका मुहं कोंचा... :( । शुभकामनायें

सादर वेदिका

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