For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ढपोरशंख (लघुकथा) / संजीव ’सलिल’

सामयिक लघुकथा:

ढपोरशंख                                                                             '
                                                                                       *
कल राहुल के पिता उसके जन्म के बाद घर छोड़कर सन्यासी हो गए थे, बहुत तप किया और बुद्ध बने. राहुल की माँ ने उसे बहुत अरमानों से पाला-पोसा बड़ा किया पर इतिहास में कहीं राहुल का कोई योगदान नहीं दीखता.


 आज राहुल के किशोर होते ही उसके पिता आतंकवादियों द्वारा मारे गए. राहुल की माँ ने उसे बहुत अरमानों से पाला-पोसा बड़ा किया पर देश के निर्माण में कहीं राहुल का कोई योगदान नहीं दीखता.

 सबक : ढपोरशंख किसी भी युग में हो ढपोरशंख ही रहता है.

Views: 935

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanjiv verma 'salil' on February 26, 2013 at 7:31am

सत्यनारायण जी
आपका बहुत-बहुत आभार.

Comment by Satyanarayan Singh on February 20, 2013 at 7:02pm

आदरणीय आचार्य जी, सामायिक, तुलनात्मक और  लघुकथा के माध्यम से प्रेरक व्यंग है. सादर बधाई.

Comment by sanjiv verma 'salil' on February 20, 2013 at 6:45pm

राम शिरोमणि जी, संदीप जी
लघुकथा आपको रुची तो मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया.

Comment by sanjiv verma 'salil' on February 20, 2013 at 6:40pm

सौरभ जी, राजेश जी, प्राची जी, अशोक जी, आरती जी, बृजेश जी, तुषार जी, संदीप जी, वेदिका जी

आपकी गुणग्राहकता और संवेदनशीलता को नमन.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 19, 2013 at 4:17pm

आदरणीय संजीव जी,

सामयिक लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई..

इस कथा के गठन और शिल्प की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है.

कथा का शीर्षक बिलकुल चुन कर रखा गया है... दो राहुल की तुलना का ये सार्थक ख्याल गज़ब का लगा. 

पुनः बधाई .सादर.

Comment by वेदिका on February 19, 2013 at 4:12pm

आदरणीय संजीव ’सलिल’ जी !

                             नमस्कार!

बहुत सटीक व्यंग ... बरबस ही कथा के अंत में मुस्कान आजाती है। 

वाह ...

शुभकामनायें !!!

Comment by sandeep tomar on February 19, 2013 at 3:46pm

मजेदार बात  ये है कि जिन दो राहुलो की तुलना हो रही है उनमे कोई तुलना ही नहीं है फिर भी लघु कथा तो अपनी बात कह गयी। वह मज़ा आ गया पढ़कर 

Comment by sandeep tomar on February 19, 2013 at 3:44pm

लघु कथाकार जगदीश कश्यप की याद आती है जब वो नागरिक लघु कथा संग्रह में लघु कथा के तरीके बताते हैं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 11:17am

आदरणीय सलिल जी चंद शब्दों में युगों का तुलनात्मक विश्लेषण कर एक सटीक व्यंग्य द्वारा बहुत बड़ी बात कही लघु कथा शीर्षक के साथ पूर्णतः न्याय कर रही है|बधाई आपको 

Comment by Aarti Sharma on February 18, 2013 at 4:46pm

प्रणाम सर..अति सुन्दर और प्रेरक लघुकथा पर बधाई स्वीकारें ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
21 hours ago
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service