पुराना जब भी जाता है नया इक साल आता है,
नया जब साल आता है उम्मीदे साथ लाता है/
कोई इक बार आकर के व्यथा उनसे भी तो पूछो,
जिन्हें आते हुए नव साल का इक पल न भाता है/
कभी तुम झाँक लो देखो जरा उस मन की तो बूझो,
बुझी उम्मीद है जिसकी अँधेरा अब सताता है/
शमाएँ तुम जलालो चढ के जा जाकर मीनारो पे,
नही कर पाओगे रोशन यही अब दिल में आता है/
सबक इस हादसे हालात से पाकर के तुम समझो,
खुशी कैसी लगे जब कोई इक मातम मनाता है/
Comment
बहुत सुंदर गजल....
आदरणीय विजय निकोर जी आदरणीय राजेश कुमार झा जी, आदरेया डॉ. प्राची जी सादर आप सभी से भावों पर सराहना पाकर मन को संतोष हुआ. आप सभी का हार्दिक आभार.
आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम,रचना भाव पर आपसे आशीष पाकर प्रसन्नता हुई. हार्दिक आभार.
सबक इस हादसे हालात से पाकर के तुम समझो,
खुशी कैसी लगे जब कोई इक मातम मनाता है/..............वेदना की मुखरित अभिव्यक्ति
आपकी रचना बहुत ही अच्छी होती है, इस रचना ने भी वही किया है, 'मन बंजारा सबकुछ हारा, रामनाम बस एक सहारा' ऐसी विषम स्थिति पर यही पंक्तियां मन में कौंध गई, सादर
वेदना की सुन्दर अभिव्यक्ति।
विजय निकोर
वेदना को सुन्दर स्वर मिला है. सही है, जिस पल मन दुखी हो कुछ सुहाता नहीं है.
शुभ-शुभ
हार्दिक आभार आद. महिमा श्री जी सादर,आपको भी सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
शमाएँ तुम जलालो चढ के जा जाकर मीनारो पे,
नही कर पाओगे रोशन यही अब दिल में आता है/
सबक इस हादसे हालात से पाकर के तुम समझो,
खुशी कैसी लगे जब कोई इक मातम मनाता
आदरणीय अशोक सर ..
आपसे पूर्णतः सहमत अगर इतना कुछ होने के बाद मानसिक तौर पर परिवर्तन नहीं आये तो फिर बड़ी ही निराशाजनक बात होगी पर ..कोशिश तो जारी रखनी होगी .. आशा है नववर्ष में समाज में सकरात्मक बदलाव आये ..सोच बदलें .
नववर्ष की आपको सपरिवार बधाइयाँ और शुभकामनाएं
आदरणीय श्याम जी आद. नादिर खान साहब, आद. डॉ. अजय खरे जी सादर, आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन.इतने बड़े आंदोलन के बाद भी नारी शोषण में कमी ना आना अवश्य ही चिंता का विषय है जब तक कोई अच्छा हल नहीं निकल आता नए वर्ष ही क्या कोई भी जश्न फीका ही हो जाता है.आप सभी का पुनः आभार.
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