मुझे जानो समझो
पर इतना न झकझोरो
कि मैं नग्न हो जाऊं
अपमानित फिरू !
यह जो पाने, न पाने के दायरे है
तुम्ही कहो, इन्हें मैं कैसे तोडू ?
अगर मुझे पूर्ण न कर सको
तो न समझने का भान करो !
पर इतना भी न झकझोरो
कि मैं नग्न हो जाऊं
अपमानित फिरू !
अन्वेषा....
हम सब के ह्रदय में कही न कही एक भिक्षुक छुपा हुआ है !
Comment
Dhanyawad Pradeep ji..abhar
आदरणीया अन्वेषा जी,
सादर
सही तो कहा है आपने .
बधाई.
Rajesh Kumari ji aur Vijay Nikore ji..shukriya
हम सब के ह्रदय में कही न कही एक भिक्षुक छुपा हुआ है !
यह सच है। सुन्दर भावों से पिरोया है कविता को। बधाई।
विजय निकोर
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
Suman ji, Shailendra ji, Vinus ji aur Arun ji...abhaar..waise to lekhak ke liye har kabita bahut pyara hota hai, par yeh mere dil ke bahut karib hai...abhar ak baar phir
यथार्थ को सत्यता प्रदान करती बेहतरीन अभिव्यक्ति बधाई स्वीकारें
गहरी और सच्ची अभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई
बहुत ही सारगर्भित रचना, हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया Anwesha Anjushree मैम
DI aapne sach kahaa ,ham sabke andar ek bhichhuk chupa hai,,,,bilkul ishwar ke saamne ham deen bhichhuk hai,,,namrta ka prateek insaan ,,,bhi bhichhuk hai,,,sabhee ke liye vineet bhaav rakhtaa hua bhichhuk hi hai....man ko chhoo gayee aapki panktiyaan
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