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ग़ज़ल : मुझसे नज़रें न तू मिलाया कर

बहर : २१२२ १२१२ २२ [इस बहर को ११२२ १२१२ २२ भी लेने की छूट होती है]

 

मुझसे नज़रें न तू मिलाया कर

की है तौबा न यूँ पिलाया कर

 

जिस्म उरियाँ हो रूह ढँक जाए

ऐसे कपड़े न तू सिलाया कर

 

कई रिश्ते तो नींव तक काँपें

यूँ कमर अपनी मत हिलाया कर

 

अभी अनशन से उठ के आया है

उसे इतना भी मत खिलाया कर

 

आइना जिस्म ही दिखाता है

आइने पर न तिलमिलाया कर

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2012 at 6:07pm

rajesh kumari जी, बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2012 at 6:06pm

Saurabh Pandey जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब। आपसे सहमत हूँ कि अभी और समय इस पर देना पड़ेगा। आपसे उत्साहवर्द्धन और मार्गदर्शन दोनों समान रूप से प्राप्त होते हैं। आभारी हूँ। स्नेह बनाए रखें।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2012 at 6:05pm

वीनस केसरी जी, भाई आपने सही पकड़ा है। त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद। इसे ठीक कर देता हूँ।

अगर शे’र स्पष्ट नहीं है तो इसे कारखाने में डालना ही बेहतर है। शे’र अगर स्वतः स्पष्ट नहीं है तो वो शे’र है ही नहीं। :)

दो शे’र पसंद आए इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 22, 2012 at 5:52pm

अच्छी ग़ज़ल कही है धर्मेन्द्र जी बधाई आपको 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 22, 2012 at 6:51am

वाह ! यह ग़ज़ल आसन्न हेतु उदाहरण सदृश है ! कई अश’आर अच्छे हुए हैं. कुछ समय की कमी का अभी तक रोना रो रहे हैं.  लेकिन खुद ही आपने स्वीकारा भी है -

आइना जिस्म ही दिखाता है
आइने पर न तिलमिलाया कर.. . . 

:-))))

बधाई स्वीकार करें, भाईजी.

Comment by वीनस केसरी on November 22, 2012 at 3:48am

धर्मेन्द्र भाई वाह वा क्या कहने
यह दो अशआर विशेष रूप से पसंद आए -
खूबसूरत  ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई

आइना जिस्म ही दिखाता है
आइने पर न तिलमिलाया कर

जिस्म उरियाँ हो रूह ढँक जाए
ऐसे कपड़े न तू सिलाया कर

इस शेअर की कहन मुझे स्पष्ट नहीं हो सकी ...कृपया बताएं कि आपने क्या कहा है ...

है टिकी जिनकी कब्र पर दुनिया
ऐसे अरमान मत जिलाया कर

 

//  बहर : २१२ २१२ १२२२ [इस बहर को ११२ २१२ १२२२ भी लेने की छूट होती है] //
भाई आपने अरकान को गलत तोडा है यदि उचित समझें तो सुधार कर यह कर लें -
बहर ए खफीफ की मुज़हिफ सूरत  : २१२२ / १२१२ / २२ [इस बहर को ११२२ / १२१२ / २२ भी लेने की छूट होती है]

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