गज़ल के विषय में मेरा ज्ञान ना के बराबर भी शायद ही हो, फिर भी प्रयास कर रहा हूँ ! आशा है, आशीष रहेगा !
तुमसे जो चंद बात में कुछ पल ठहर गया !
जरा खबर ना हुई बड़ा लम्हा गुज़र गया !
अमृत ही पाने को निकला था सफर पे मै !
पीछे मधु की बूंदों के सारा सफर गया !
हुनर-ए-जमात यूं तो मेरे भी पास थी !
दौर-ए-नुमाईश में मगर सब हुनर गया !
जीत के हर वक्त में बाजू-ए-यकीन था !
पर जो हारा दोष सब किस्मत पे धर गया !
कल को बनाने में सारी जिन्दगी गुज़री !
कल तो बन नही पाया आज भी बिखर गया !
आरजू-ए-जिन्दगी थी क़यामत दौर तक !
पर करम ऐसे किए कि जीते जी मर गया !
-पियुष द्विवेदी ‘भारत’
Comment
आदरणीय रेखा जी, बहुत बहुत धन्यवाद !
वीनस भाई जी, प्रयत्न जारी है ! [मार्गदर्शन हेतु आभार आपका !
पियुष जी,
 ज्ञानी तो कोई खुद को घोषित नहीं कर सकता 
बहरहाल आपसे निवेदन है कि शिल्प की बारीकियों को समझने का प्रयत्न जरूर करें 
कल को बनाने में सारी जिन्दगी गुज़री !
कल तो बन नही पाया आज भी बिखर गया !उम्दा गजल पर हार्दिक बधाई पियूष जी
आदरणीय वीनस भाई, इस गज़ल-विषयक अज्ञानी को सराहने हेतु बारम्बार धन्यवाद !
आदरणीय गणेश जी, सादर धन्यवाद ! आपकी बात पर प्रयास रहेगा !
आदरणीय प्रभाकर जी, आपने इस प्रयास को सराहा, तो ये सफल हुवा ! आगे भी मेरा प्रयास जारी रहेगा ! साभार धन्यवाद !
आदरणीय सौरभ जी, बधाई हेतु धन्यवाद !
पियुष जी, एक मसल साझा कर रहा हूँ, ’थोड़े कहे को बहुत समझना’.
प्रथम प्रयास के लिये बधाई.
आपको ग़ज़ल कहते देखना बहुत ही सुखकर लगा भाई पियूष जी. आपके पास कहन है शिल्प का ज्ञान आने में भी देर नहीं लगेगी, प्रयासरत रहें. जिसके इस सद्प्रयास हेतु आपको दिल से बधाई देता हूँ.
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