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मुलजिम को संबोधित करते हुए न्यायधीश ने कहा:
"तुम पर आरोप है कि तुम सीमा पार से ५ लाख रुपये की जाली करंसी, १० लाख रुपये ने नशीले पदार्थ और भारी मात्रा में गोला बारूद लाते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किए गए हो ! इस से पहले कि अदालत कोई निर्णय सुनाये, क्या तुम अपनी सफाई में कुछ कहना चाहोगे?"
दोनों हाथ जोड़ कर मुलजिम ने जवाब दिया,
"केवल एक सवाल पूछने की इजाज़त चाहूँगा हुज़ूर !"
"इजाज़त है", न्यायधीश ने कहा
"जाली करंसी, नशीले पदार्थ और हथियारों का ज़िक्र तो आपने कर दिया, मगर मुझ से जो ५०० सोने के बिस्कुट पकड़े गए थे, उनका क्या हुआ ?"

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Comment by Madanlal Shrimali on September 21, 2015 at 6:29pm
2010 में लिखी कथा आज के माहोल में भी तरोताजा।कथा में व्यंग का सुंदर शब्दांकन आ.योगराज प्रभाकरजी।
Comment by Archana Tripathi on September 21, 2015 at 2:52pm
जबरदस्त लघुकथा हैं आ.सर जी ,फिर चोर चोर मौसेरे भाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2015 at 7:44pm
बेहतरीन व्यंग्य लघुकथा के माध्यम से।
Comment by Bhasker Agrawal on December 25, 2010 at 2:22am
हा हा हा...सही पकड़ा उसने...कमाल की लघुकथा

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 18, 2010 at 3:33pm
इस व्यंग्य ने बड़ा करारा तमाचा रसीद कर दिया. लघुकथा की रवानगी काबिले तारिफ़ है.
बधाई स्वीकारें भाई साहब.

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 17, 2010 at 10:27am
नवीन भाई जी, गणेश बागी जी, आपका दिल से आभार लघुकथा पसंद करने के लिए !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2010 at 10:24am
पुलिस विभाग चाय पानी के साथ बिस्किट खाने मे माहिर है, भले ही वो सोने के ही बिस्किट क्यू ना हो, सब पच जाता है | बहुत ही करारी चोट है योगराज सर , जबरदस्त |

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