For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चल दिल चलें अपने जहाँ.......

दर्द भरा है ये समां, होने लगा धुआं धुआं.

ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.


दो पल मुझे हंसा गया, सदियों मगर रुला गया.

सीने में आग जल गयी, इतना मुझे सता गया,

रोने लगा रुवां रुवां, चल दिल चलें अपने जहाँ.

ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.


ज़ख़्मी हुयी सहर सहर, शामें भी खूं से तर बतर,

हर सू से मैं बेआस हूँ, पूछो न क्यूँ उदास हूँ,

वो कर गया है बेज़बां, चल दिल चलें अपने जहाँ.

ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.

Views: 474

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by इमरान खान on August 6, 2012 at 12:47pm

धन्यवाद् @गणेश लोहानी जी
@सौरभ भैया आपको मेरा प्रयास रुचिकर और सार्थक लगा ... मै हृदय की गहराईयों से आपका आभार व्यक्त करता हूँ.
@अरुण जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका ... मेरे लिए आप जैसे वरिष्ठ की सराहना पथ प्रदर्शन की तरह है

Comment by Abhinav Arun on May 7, 2012 at 6:38pm

दर्द भरा है ये समां, होने लगा धुआं धुआं.

ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ

अति सुन्दर इमरान जी कुछ पंक्तियाँ बहुत नायाब बन पड़ी है हार्दिक बधाई !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2012 at 4:51pm

एक रचनाकार अपनी भावनाओं को लेखन की कई-कई विधाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करता है. इमरानभाई की यह कोशिश बहुत रंग लायेगी, इसका भान है.  सतत प्रयत्नशील रहें, इमरान भाई.

बहुत-बहुत बधाई.

Comment by ganesh lohani on May 7, 2012 at 3:14pm

वो कर गया है बेज़बां, चल दिल चलें अपने जहाँ.

ये तेरी मंजिलें कहाँ, चल दिल चलें अपने जहाँ.

बधाई 

Comment by इमरान खान on May 7, 2012 at 10:43am

आपका हार्दिक आभार @छोटू सिंह जी.

बहुत  बहुत धन्यवाद् @प्रदीप कुमार जी.

आपका पुरखुलुस शुक्रिया @राजेश कुमारी जी.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2012 at 8:59pm

दो पल मुझे हंसा गया, सदियों मगर रुला गया.

सीने में आग जल गयी, इतना मुझे सता गया,

bahut khoob. badhai. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 6, 2012 at 7:20pm


इमरान खान जी बहुत सुन्दर रचना बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
11 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service