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जिससे इंसां का भी दर्जा नहीं पाया हमने......

जिनसे इंसां का भी दर्जा नहीं पाया हमने,

मुद्दतों ऐसे ही इंसानों को पूजा हमने.

.

प्यार की पौध के मिटने से तो मर जायेंगे,

खून के अश्क से बागान को सींचा हमने.

.

हाँ उजाला नहीं होना मेरी इन राहों में,

शम्स ए पुरनूर से पाया ये अँधेरा हमने.

.

हमने मुंसिफ के भी हाथों में जो खंजर देखे,

कांपता दिल था मुक़दमा नहीं डाला हमने.

.

वहशी लोगों में किसी कांच से नाज़ुक हम थे,

हुज्जतों से बड़ी दामन ये बचाया हमने.

(कमी लगी तो इस्लाह की गुज़ारिश है....)

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Comment by इमरान खान on August 6, 2012 at 12:50pm

बहुत बहुत शुक्रिया वीनस भाई

Comment by वीनस केसरी on April 23, 2012 at 2:58pm

सुन्दर भाव
बेहतरीन कहन

बधाई स्वीकारें

Comment by इमरान खान on April 23, 2012 at 9:50am

@राणा प्रताप जी!
तहे दिल से शुक्रिया आपका... :)
एक मतले की कमी..... मतले में कुछ कमी रह गयी या मुझे एक मतला और कहना चाहिए था .. थोरा इशारा करें तो समझने आसानी हो जाये...

Comment by इमरान खान on April 23, 2012 at 9:48am

@संदीप जी!
आपको मेरी कोशिश पसंद आई मसर्रतों का मुकाम है मेरा... बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by इमरान खान on April 23, 2012 at 9:47am

@प्रदीप कुमार जी!  शुक्रिया आपका


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on April 22, 2012 at 1:00pm

अच्छी गज़ल कही है इमरान भाई| मुकद्दमे वाला शेर अच्छा लगा| एक मतले की कमी भी खली|

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 21, 2012 at 8:32pm

हाँ उजाला नहीं होना मेरी इन राहों में,

शम्स ए पुरनूर से पाया ये अँधेरा हमने

वाह इमरान भाई... क्या ख़ूब ग़ज़ल कही आपने| ख़ास तौर पर इस शेर में जो विरोधाभास अलंकार है वो मुझे बड़ा भाया| मुबारकबाद क़ुबूल करिये| :-))

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 21, 2012 at 2:52pm

 हमने मुंसिफ के भी हाथों में जो खंजर देखे,

कांपता दिल था मुक़दमा नहीं डाला हमने.

.bahut khoob bhai ji. badhai.

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