For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘मुग्ध नयनों से निहारे’

मदन-छंद या रूपमाला

****************************************

है मदन यह छंद इसका, रूपमाला नाम.

पंक्ति प्रति चौबीस मात्रा, गेयता अभिराम.

यति चतुर्दश पंक्ति में हो, शेष दस ही शेष,

अंत गुरु-लघु या पताका, रस रहे अवशेष..

****************************************

चाँदनी का चित्त चंचल, चन्द्रमा चितचोर.

मुग्ध नयनों से निहारे, मन मुदित मनमोर.

ताकता संसार सारा, देख मन में खोट.  

पास सावन की घटायें, चल छिपें उस ओट..

***************************************

था कुपित कुंदन दिवाकर, जल रहा संसार .   

विवश वसुधा छेड़ बैठी, राग मेघ-मल्हार.

मस्त अम्बर मुग्ध धरती, मीत से मनुहार. 

घन-घनन घनघोर घुमड़े, तृप्ति दे रसधार..

***************************************

--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव

Views: 760

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 29, 2012 at 5:46pm

आदरणीय अलबेला जी,

भार औ आभार दोनों, आपका ही प्यार.

भार भी भारी नहीं जब, संस्कृति आधार.

शिष्य-गुरु तो एक दो हैं, आपके हम मित्र.

आओ मिलकर साथ खीचें, मित्रता का चित्र.. सादर

Comment by Albela Khatri on July 24, 2012 at 9:07pm

आदरणीय  अम्बरीश जी,
नमन
आप जब आभार देते हैं
तो मन कहता है :

भार इस आभार में है  बहुत ही श्रीमान

किस तरह इसको उठाऊं,  मैं निपट नादान

छन्द के सम्राट तुम हो, और मैं हूँ शिष्य

है भरोसा कि मेरा अब, निखरेगा भविष्य

__सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 24, 2012 at 8:33pm

आदरणीय अलबेला जी,

आप ने यह छंद जाना, जान  बैठे  राज.

रूपमाला जो रची है,  अति मुदित मैं आज.

गर्व मुझको आप पर है, बाँटते जो प्यार.

लीजिए  मेरी बधाई,  साथ  में  आभार..

सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 24, 2012 at 8:13pm

स्वागतम रेखा जी ! आपके द्वारा प्राप्त सराहना के लिए आपके प्रति हार्दिक आभार ज्ञापित कर रहा हूँ !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 24, 2012 at 8:12pm

स्वागत है संदीप जी ! आपका बहुत-बहुत आभार !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 24, 2012 at 8:11pm

स्वागत है आदरणीय सौरभ जी !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2012 at 6:51pm

मेरे कहे को अनुमोदित करने के लिए सादर धन्यवाद, आदरणीय अम्बरीषजी.

रूपमाला छंद -

ला ल ला ला/ ला ल ला ला/ ला ल ला ला/ ला ल  ..  चौदह पर यति.. . कुल चार पद.   

बस, हो गयी परिभाषा ..   :-))))

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 24, 2012 at 5:21pm

आपने क्या खूब जाना, यह गज़ब अंदाज़.        

‘राजभा’गा ‘राजभा’गा, ‘राजभा’गा राज.

राज ये जानेगा जो भी, वो कहेगा भाइ.  

फाइलातुन  फाइलातुन,  फाइलातुन  फाइ..  

212 2         2122        2122         21 

आदरणीय सौरभ जी, रूपमाला में प्रतिक्रिया के लिए आपके प्रति आभार व्यक्त कर रहा हूँ ! सादर :

Comment by Rekha Joshi on July 24, 2012 at 12:44pm

आदरणीय अम्बरीश जी 

था कुपित कुंदन दिवाकर, जल रहा संसार .   

विवश वसुधा छेड़ बैठी, राग मेघ-मल्हार.

मस्त अम्बर मुग्ध धरती, मीत से मनुहार. 

घन-घनन घनघोर घुमड़े, तृप्ति दे रसधार..

घन-घनन घनघोर घुमड़े, तृप्ति दे रसधार..अति सुंदर रूपमाला , बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 24, 2012 at 10:26am

वाह वाह आदरणीय सर जी क्या रूप माला है क्या शब्द माला है अदभुत छंद वाह वाह सर जी बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
12 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service