यह जो शहरीकरण हो रहा बाबाजी
हरियाली का हरण हो रहा बाबाजी
चीलें, कौए, चिड़ियाँ, तोते, तीतर संग
वनजीवन का मरण हो रहा बाबाजी
भौतिक सुविधाओं को तो विस्तार मिला
संकुचित पर्यावरण हो रहा बाबाजी
पेड़ काट कर, मानव मानो अपनी ही
हत्या का उपकरण हो रहा बाबाजी
इसका दुष्परिणाम देखिये घर-घर में
रोगों का अवतरण हो रहा बाबाजी
ख़बरदार ! कुदरत का क्रोध रुला देगा
उसके विरुद्ध आचरण हो रहा बाबाजी
तुम मेरी आँखों से देखो "अलबेला"
सकल सृष्टि का क्षरण हो रहा बाबाजी
JAI HIND !
Comment
धन्यवाद योगी सारस्वत जी....
आपका स्नेह सर आँखों पर .......
जय हो श्री प्रदीप बाबा की .......
धन्यवाद सौरभ जी......
साभार
सकल सृष्टि का क्षरण हो रहा बाबाजी
इस मिसरे ने ारी बातों को रवानी दी है.. बहुत खूब अलबेला भाईजी.
आपका धन्यवाद इस सराहना और सहमति के लिए बन्धुवर कुमार गौरव अजितेंदू जी !
भाई अरुण कुमार निगम जी,
कमाल कर दिया आपने........जय हो
सराहना के लिए शुक्रगुजार हूँ......
अलबेला जी यूँ ही प्रेरणा दिया करें
जनता में जागरण हो रहा बाबाजी.
भाषा की सरिता देखो नित सूख रही
लुप्त कहाँ व्याकरण हो रहा बाबाजी.
जहाँ दिलों में प्रेम की आवाजाही थी
रुपयों का अंतरण हो रहा बाबाजी.
राजनीति और गणित विषय थे अलग-अलग
द्व्य का एकीकरण हो रहा बाबाजी
जोड़ घटाना गुणा भाग दिन रात चले
रोज नया समीकरण हो रहा बाबाजी.
सुविधाओं की कील ठोंकना बंद करें
घायल पर्यावरण हो रहा बाबाजी.
श्रद्धेय आशीष यादव जी,
आपकी प्रशंसा पा कर मन गदगद हुआ
बहुत बहुत शुक्रिया........
श्रद्धेय नीलांश जी,
बहुत बहुत शुक्रिया........ आपकी सराहना ने मनोबल बढाया है
धन्यवाद
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