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इस बार का तरही मिसरा 'बशीर बद्र' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई"
वज्न: 212 212 212 212
काफिया: ई की मात्रा
रद्दीफ़: रह गई
इतना अवश्य ध्यान रखें कि यह मिसरा पूरी ग़ज़ल में कहीं न कही ( मिसरा ए सानी या मिसरा ए ऊला में) ज़रूर आये|
मुशायरे कि शुरुवात शनिवार से की जाएगी| admin टीम से निवेदन है कि रोचकता को बनाये रखने के लिए फ़िलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद कर दे जिसे शनिवार को ही खोला जाय|

इसी बहर का उदहारण : मोहम्मद अज़ीज़ का गाया हुआ गाना "आजकल और कुछ याद रहता नही"
या लता जी का ये गाना "मिल गए मिल गए आज मेरे सनम"

विशेष : जो फ़नकार किसी कारण लाइव तरही मुशायरा-2 में शिरकत नही कर पाए हैं
उनसे अनुरोध है कि वह अपना बहूमुल्य समय निकाल लाइव तरही मुशायरे-3 की रौनक बढाएं|

Views: 8364

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Replies to This Discussion

हमने उनको आपना माना मेरे दोस्त ,
ओ हमें भूल गए दोस्ती में कमी रह गई
मैंने दिल से चाहा उन्हें ओ मेरा न हुए ,
लगता हैं मेरी चाहत में कुछ कमी रह गई ,
ग़ज़ल
जीतने कि हसरतों में मैं नहीं जानता,
वोह एक मासूम सी मुस्कान कहाँ रह गई ।

पूरी कायनात है मुठी में आज फिर भी ,
न जाने क्यों ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई ।

सज्जदा किया झुक कर तुने जब ,
पत्थर सी इस जान में कुझ नमी रह गई ।

हर उस रस्ते को मैं चूमता हूँ ,
जिस पे तेरी पाँव की तस्वीर रह गई ।

इतना न गरूर कर तू अपने हुसन पर ,
यहाँ न अनारकली रह गई , न मुमताज़ रह गई ।

कोंन कहता है की मैं तुझे प्यार नहीं करता ,
पुछ कि तेरे होठों पे यह हंसी क्यों रह गई ।

परिंदा हूँ मैं "लाली" उड़ने की कला जनता हूँ ,
पर मेरे परों की धड़कन तेरे दिल में रह गई ।

राज "लाली " बटालवी
Thanks Navin G!!
सराहनीय प्रयास है| बहरो वज्न और काफिये पर ग़ज़ल अभी कमज़ोर है| प्रयास करते रहे वह भी आ जायेगा|
Thanks Rana G! appereciate your comments !!
सज्जदा किया झुक कर तुने जब ,
पत्थर सी इस जान में कुझ नमी रह गई ।

हर उस रस्ते को मैं चूमता हूँ ,
जिस पे तेरी पाँव की तस्वीर रह गई ।bahut khoob kha .. dil se niklee hui aawaz
Thanks Asha pandey G@@

appericiate it !!
परिंदा हूँ मैं "लाली" उड़ने की कला जनता हूँ ,
पर मेरे परों की धड़कन तेरे दिल में रह गई ।

बहुत खूब, मुशायरे मे आप की शिरकत हुई, बहुत बढ़िया , अच्छा प्रयास किये है आगे भी जारी रखे ,
Thanks Ganesh G!
लाली भाई, प्रयास और ख्यालात दोनों उम्दा हैं, मगर बात को वज़न और लय में कहने की महारत अभी आपको हासिल करनी है ! बहरहाल, यह मिसरा इस बाद का शाहिद है कि प्रतिभा की कमी नहीं आप मे, और इस ख्याल ने मेरा दिल जीत लिया :
//पर मेरे परों की धड़कन तेरे दिल में रह गई ।//
"परों कि धड़कन", बड़ी ऊंचा तखय्युल है दोस्त !
waah bahut khoob Mumtaz ji kamal kya khoob gzal kahee aanand aagya

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