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"कशमकश"

क्यों वक़्त से पहले ये वक़्त भागता सा लगे है मुझे. 

फिर भी क्यों ये ज़िन्दगी थमी सी लगे है मुझे ?

एक अजीब सी कशमकश है! क्या? मालूम नहीं.

पर कभी सब पास तो कभी सब दूर सा लगे है मुझे.

जानती नहीं की वक़्त किस राह ले जायेगा मुझे?

फिर भी ये कमबख्त कभी अपना, तो कभी पराया लगे है मुझे.

कहने को सब कुछ है आज अपना फिर भी.....

न जाने क्यूँ आज हर चेहरा बेगाना लगे है मुझे.

कैसी है ये कशमकश ! कैसी ये घुटन है ?

क्यों वक़्त से पहले ये वक़्त भागता सा लगे है मुझे?

फिर भी ये ज़िन्दगी थमी सी लगी है मुझे. 

मोनिका जैन "डोली"   

 

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 13, 2012 at 1:24pm

वक़्त अगर वक़्त से आगे भागता दिखाई दे और ज़िन्दगी फिर भी रुकी रुकी हुई सी ही लगे, तो भई वाकई कोई ज़बरदस्त कशमकश ही चल रही है. इस कशमकश को खूब अच्छी तरह से अलफ़ाज़ दिए हैं मोनिका जी, बधाई.

Comment by Abhinav Arun on March 12, 2012 at 2:52pm

कैसी है ये कशमकश ! कैसी ये घुटन है ?

क्यों वक़्त से पहले ये वक़्त भागता सा लगे है मुझे?

सारगर्भित पंक्तियाँ ! सशक्त रचना हेतु हार्दिक बधाई !!

Comment by Harish Bhatt on March 12, 2012 at 2:37pm

monika ji pranaam. 

bahut sundar rachna ke liye badhayi.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 12, 2012 at 12:28pm

आदरणीय मोनिका जी नमस्ते,

आपकी रचना के भाव बहुत सुन्दर हैं| यदि शिल्प पर थोड़ा और ध्यान दें तो यह और भी बेहतर हो जाएगी| आभार,

कृपया ध्यान दे...

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