वो टूटा फिर से सितारा मोहब्बत की खातिर
देख लो तुम भी नजारा मोहब्बत की खातिर
आ जाओ तसव्वुर में घडी दो घडी
ये वक़्त न मिलेगा दुबारा मोहब्बत की खातिर
लोग तो इश्क में जीवन ही लुटा देते हैं
दे दो बाँहों का सहारा मोहब्बत की खातिर
छूट गई है मेरे हाथों से पतंग की डोर
थाम लो इसका किनारा मोहब्बत की खातिर
खुशियों की ये दौलत मुझसे छीन ना लेना
ग़ुरबत में जीवन है गुजारा मोहब्बत की खातिर
जाओ कोई उस आसमाँ की गर्द हटा दो
चमकेगा वहीँ नाम हमारा मोहब्बत की खातिर
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Comment
Saurabh ji tahe dil se shukria.
जाओ कोई उस आसमाँ की गर्द हटा दो
चमकेगा वहीँ नाम हमारा मोहब्बत की खातिर
पहली पंक्ति क्या ही सामयिक है ! आसमान गर्द से बुरी तरह भरा हुआ है.
राजेशकुमारीजी, आपकी भावदशा के प्रति मेरा सादर अभिनन्दन.
shukria Manoj ji.
hardik dhanyvaad Anand ji ..shukriya
hardik aabhar Sandeep ji
माननीया,
अगर मुहब्बत की ख़ातिर इंसान हर काम करने लगे तो वैमनस्य का तो नामो निशाँ ही मिट जाएगा दुनिया से| सुन्दर रचना पर बधाई,
आशुतोष जी हार्दिक धन्यवाद ,आभार आपका आपको मेरी ग़ज़ल पसंद आई
हार्दिक आभार प्रदीप जी
जाओ कोई उस आसमाँ की गर्द हटा दो
चमकेगा वहीँ नाम हमारा मोहब्बत की खातिर
kya kahoon. nishabd, badhai
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