For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


▬► Photography by : Jogendrs Singh ©

::::: अंकुरण ::::: Copyright © (मेरी नयी कविता)
जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 10 अगस्त 2010 )

(सामान्य जीवन में अच्छे या बुरे का चरम बहुधा नहीं हुआ करता है.. परन्तु यह भी तो देखिये कि यहाँ मानव मन को अभिव्यक्त किया गया है, जिसकी सोचों का कोई पारावार नहीं होता.. जितना सोच जाये वही कम है.. सीमा बंधन सोचों के लिए बने ही नहीं हैं.. फिर लिखते वक्त मेरे मन में अपने मित्र सी हुई बातचीत थी जिसमे मैंने कहा था कि परस्पर दो विपरीत सोचों वाले लोग किस तरह एक दुसरे से आकर्षित हो लेते हैं, और होने पर जुड़े भी कैसे रह लेते हैं.. तत्पश्चात उसी के आगे पीछे जो विचार मन में आते गए, बस उन्ही को लिखता गया..)

▬► हिंदी रचनाओं के क्षेत्र में एक अदना सा प्रयास है.. कोशिश यह भी रहती है कि समाज में कुछ बदल पाए.. कभी-कभी व्यक्तिगत भाव भी ज़गह पा जाते हैं..

▬► NOTE :- कृपया झूठी तारीफ कभी ना करिए.. यदि कुछ पसंद नहीं आया हो तो Please साफ़ बता दीजियेगा.. मुझे अच्छा ही लगेगा..
▬► !!..धन्यवाद..!!
.

Views: 544

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on August 29, 2010 at 2:20pm
@ राणा , कैसे हो छोटे ... ? तुमको यहाँ देख कर अच्छा लगा ...
रचना के समर्थन का शुक्रिया दोस्त ... :)

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 28, 2010 at 11:25pm
सुन्दर कविता| मन में उपजी व्यक्तिगत और परिस्तिथिजन्य भावों की परस्पर विरोधी अनुभूतियों का सटीक विश्लेषण|
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on August 28, 2010 at 7:49pm
@ Mr.Sanjay , thanx for your gr8 appreciation ... :)
Comment by Sanjay Kumar Singh on August 28, 2010 at 5:37pm
waah, do pratibha ka darshan ek rachna mey, photographi aur kavita saath saath bahut khub, u r great Mr. joginder singh jee
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on August 28, 2010 at 3:55pm
@ आशीष जी , जब कोई तारीफ करता है तो कुछ अजीब सा लगने लगता है , यह तो नहीं कहूँगा कि अच्छा नहीं लगता तथापि ... जाने दीजिए ... शुक्रिया आपका ... :)
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on August 28, 2010 at 3:52pm
@ बागी जी , आपकी विश्लेषण क्षमता बड़ी ही मनमोहक है ... आपका धन्यवाद ... :)
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on August 28, 2010 at 3:51pm
@ कंचन जी , घुमती ई या नहीं यह तो पाता नहीं मगर भाव जिस क्रम से आये उसी से यह रचना बन पड़ी है ... आपका धन्यवाद ...
Comment by आशीष यादव on August 28, 2010 at 3:47pm
आपने लिखा है की झूठी तारीफ़ न करे| अरे ये तो इतनी बढ़िया चीज है की तारीफ़ किये बगैर रह नहीं सकता| हाँ ये जरूर है की आप की भाषा थोड़ी कठिन है परन्तु बहुत ही उम्दा कविता है|
Comment by Kanchan Pandey on August 28, 2010 at 3:16pm
yah kavita thodi jilebi ki tarah ghumti lagi, thx

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 27, 2010 at 7:27pm
जोगेंद्र सिंह जी, आपने बडे ही प्राकृतिक रूप से यह कविता लिखी है, मन की दुविधा को और जीवन के दोहराव को प्रदर्शित बहुत ही अच्छी कविता दी है आपने, बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन अभिव्यक्ति हेतु,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service