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कहता हूँ तुझसे जन्मों का नाता है ओबीओ

गजल
221/2121/1221/212

*
लेखन का खूब गुण जो सिखाता है ओबीओ
कारण यही है सब  को  लुभाता  है ओबीओ।।
*
जुड़कर  हुआ  हूँ  धन्य  निखर  लेखनी गयी
परिवार  जैसा   धर्म   निभाता   है  ओबीओ।।
*
कमियों बता के दूर करें कैसे यह सिखा
लेखक सुगढ़ हमें यूँ बनाता है ओबीओ।।
*
अच्छा स्वयं तो लिखना है औरों को भी सिखा
चाहत ये सब के  मन  में  जगाता  है ओबीओ।।
*
वर्धन हमारा  हौसला  करने  को साथ साथ
बढ़चढ़ के आगे नित्य जो आता है ओबीओ।।
ई*
कब  से  जुड़े  हो  प्रश्न  अगर  पूछ  ले  कोई
कहता हूँ तुझसे जन्मों का नाता है ओबीओ।।
*
रखते हैं याद जन्म दिवस हम भी इसलिए
माता का धर्म जब यूँ निभाता है ओबीओ।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by Chetan Prakash on January 24, 2025 at 6:48pm

गज़ब धर्म निभाया, आप ने,आदरणीय भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर,  धामी जी, अनेकानेक बधाईंया !

Comment by Prof. Vijay Prakash sharma on May 16, 2023 at 10:05pm

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2022 at 5:49am

आ. भाई शीलकराम जी, आभार।

Comment by आचार्य शीलक राम on December 29, 2022 at 8:52pm

सत्य वचन

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 8, 2022 at 3:52pm

आ. भाई अवनीश जी, हार्दिख धन्यवाद।

Comment by Awanish Dhar Dvivedi on August 10, 2022 at 6:16am

बिल्कुल सत्य वचन है सर बहुत सुन्दर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 10, 2022 at 6:29am

आ. भाई। चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति एवं उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Chetan Prakash on April 9, 2022 at 2:11pm

आदाब, सम्बोधन  विधा में अच्छी ग़ज़ल हुई है, भाई  लक्ष्मण सिंह मुसाफिर 'धामी' जी ! एकाधिक स्थलों पर सुधार  की गुंजाइश  महसूस  हुई,  यथा " वर्धन  हमारा  होंसला करने को साथ साथ" को विन्यास सम्मत ढंग  से यूँ  कहा जा  सकता  है, 'वो होंसला भी बढ़ सके बहतर कहें ग़ज़ल' , विचार  कीजिएगा  ! सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2022 at 9:46am

आ. भाई मिथिलेश जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2022 at 9:45am

आ. भाई समर जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।

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