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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ तैंतीसवाँ आयोजन है.   

 

इस बार का छंद है - कामरूप छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

21 मई 2022 दिन शनिवार से 

22 मई 2022 दिन रविवार तक

हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

चित्र अंर्तजाल के माध्यम से 

कामरूप छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक ...

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो

21 मई 2022 दिन शनिवार से 22 मई 2022 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  8. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

सादर नमन आपको आदरणीय । बहुत बहुत आभार आपका ।

आ. भाई दिनेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्रानुरूप उत्तम छन्द हुए है। हार्दिक बधाई।

सादर अभिवादन धामी जी। छंद पर प्रोत्साहित करने हेतु बहुत बहुत आभार आपका।

आदरणीय दिनेश  भाई

इस लम्बी और सार्थक छंद के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें|

 इस जगत का सार । .............   धरा का यह सार ।  [  या ऐसा ही कुछ संशोधन ]

कर रहीं ख़ुशहाल ।। ,,,,,,,,,,,,,,,, यह  भी  २१  या १२ से प्रारंभ हो  

आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी सादर, प्रदत्त चित्र पर पाँचों छंद आपने. तालिबान इतिहास पर सुन्दर रचे हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 

अद्भुत ! 

आदरणीय दिनेश विश्वकर्माजी, आपकी छांजसिक रचना ने चकित किया है. आपकी प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद और अशेष बधाइयाँ

शुभातिशुभ

कामरूप छंद

 

जीवन मिला है, क्यों मुझे यह, क्यों मिली है प्यास ।

मुझको किताबें, चाहिये थीं, पर मिला वनवास ।

बंदूक लेकर, मैं फिरूँ अब, भागता दिनरात ।

बेचैन लगता, आदमी वह, सोचकर यह बात ।।

 

बंदूक से कब, पा सका है, कौन अब तक ज्ञान ।

कब-कब मिला है, दुश्मनी कर, लोक में इस मान ।

देतीं हमेशा, पुस्तकें ही,तो हमें कुछ सीख ।

क्या कुछ गलत है, क्या सही है, और क्या है भीख ।।

 

मौलिक/अप्रकाशित.

आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्रानुसार बहुत सार्थक चित्र हुए हैं । हार्दिक बधाई।

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत छंदों पर उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार आपका. सादर.

आदरणीय अशोक  भाईजी

बहुत सुन्दर| अच्छी लगी आपकी यह प्रस्तुति, हार्दिक बधाई|

प्रथम तीन में बन्दूक धारी स्वयं अपने बारे में कहता है  किन्तु अंतिम पंक्ति के प्रथम दो चरण में उसके बारे में किसी और के विचार हैं| यह एक ही छंद में सही प्रतीत नहीं होता| कुछ ऐसा होना था ......

१   बेचैन लगता, आदमी वह, सोचकर यह बात ।। ,,,,, बेचैन रहता, हूँ सदा मैं, सोचकर यह बात ।।

२   लोक में इस मान । ............ लोक में सम्मान  ।

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रस्तुत छंदों पर उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार. आपके दोनों ही सुझाव उत्तम है. सादर.

आदरणीय अशोक भाईजी, 

आपने प्रदत्त छंद के विन्यास को जिस सुगढ़ता से साधा है, वह श्लाघनीय है. 

आ० अखिलेश भाई के सुझाव अनुकरणीय हैं

सादर

शुभ-शुभ

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Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
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सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
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सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
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"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
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"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
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