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शठ लोग अब पहनकर चोला ये गेरुआ सा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२२/२२१/२१२२


हँसना सिखाया हमने आँखों के आँसुओं को
सम्बल दिया है हरपल  कमजोर बाजुओं को।१।
*
कहती है रूह उन  की  बलिदान जो हुए थे
पहचान कर  हटाओ  जयचन्द पहरुओं को।२।
*
शठ लोग अब पहनकर चोला ये गेरुआ सा
करने लगे हैं निशिदिन बदनाम साधुओं को।३।
*
उनको तमस भला क्यों जायेगा ऐसे तजकर
बैठे जो बन्द कर के  दिन  में भी चक्षुओं को।४।
*
कैसे वसन्त आये पतझड़ को रौंद के फिर
हर डाल न्योतती जब इस बाग उल्लुओं को।५।
*
कहते हैं उस ने की  है  हाथों की ढब सफाई
छूकर जो देखना है अबतक के अनछुओं को।६। 
*
उनसे हुआ जो परिचय बदनामियाँ मिलेंगी
पर्दानशीं ही रखना  अनजान  पहलुओं को।७।


**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 8, 2021 at 9:42pm

आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 8, 2021 at 11:11am

आदरणीय धामी जी अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2021 at 4:56am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर
उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद। गुणीजनो के सुझावानुसार मतले व मक्ते दोनों में बदलाव किया है देखिएगा।
//हँसना सिखाओ यारो सब के ही आँसुओं को
सम्बल सदा ही देना कमजोर बाजुओं को।१।
//सम्मुख न आने देना अनजान पहलुओं को।७।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2021 at 4:53am

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर
उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2021 at 4:52am

आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर
उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2021 at 4:51am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर
उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद। इंगित मिसरे में बदलाव किया है देखियेगा।
//सम्मुख न आने देना अनजान पहलुओं को।७।

मतले में भी कुछ बदलाव किया है इसे भी देखिएगा।


हँसना सिखाओ यारो सब के ही आँसुओं को
सम्बल सदा ही देना कमजोर बाजुओं को।१।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2021 at 4:47am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गजल पर
उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2021 at 4:46am

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद। मतले में कुछ बदलाव किया है देखिएगा।

हँसना सिखाओ यारो सब के ही आँसुओं को
सम्बल सदा ही देना कमजोर बाजुओं को।१।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on November 5, 2021 at 9:03pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, मतले और मक़्ते पर गुणीजनों से सहमत हूँ।  सादर। 

Comment by TEJ VEER SINGH on October 31, 2021 at 7:13pm

हार्दिक बधाई आदरणीय मुसाफ़िर जी। बेहतरीन ग़ज़ल।

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