For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खंडित नसीब - लघुकथा -

खंडित नसीब - लघुकथा -

बिंदू का तीन साल का इकलौता बेटा नंदू सुबह से चॉकबार आइसक्रीम खाने की रट लगाये हुए था। पता नहीं किसको देख लिया था चॉकबार आइसक्रीम खाते। इंदू के पास पैसे नहीं थे इसलिये  वह बार बार उसे आइसक्रीम खाने के नुकसान समझा रही थी। लेकिन बिना बाप का बच्चा जिद्दी हो चला था। किसी भी तरह बहल नहीं रहा था।

इंदू को बाबू लोगों के घर झाड़ू पोंछा बर्तन का काम करने जाना था लेकिन नंदू  उसे जाने नहीं दे रहा था ।

इंदू कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे।फिर उसे याद आया कि नंदू जब गोद में था तो वह उसे अफ़ीम चटा कर काम पर चली जाती थी।नंदू पांच छह घंटे सोता रहता था। इंदू ने ढूंढ कर अफ़ीम की पुड़िया निकाली और एक कप दूध में मिला दी।इस बार इंदू ने थोड़ी ज्यादा अफ़ीम ली थी क्योंकि अब नंदू बड़ा भी तो हो गया था।क्या पता असर करे या ना करे।

"ले नंदू अभी थोड़ा दूध पीले। मैं तेरे लिये आइसक्रीम लेकर आती हूँ।"

"मैं भी चलूंगा माई।" नंदू फिर मचल गया।

"नहीं बेटा मेरे पास पैसे नहीं हैं।किसी के घर से लूंगी।पता नहीं किससे मिलेंगे। तू परेशान हो जायेगा।"

"नहीं माई, मुझे कोई परेशानी नहीं होगी।"

"पर बेटा कुछ बाबू लोग को तेरा आना अच्छा नहीं लगता।"

"माई मैं बाहर ही तेरा इंतज़ार कर लूंगा।"

"तू इतना अच्छा बेटा होकर कैसी ज़िद की बात करता है।बाहर कितनी तेज धूप है।"

बार बार समझाने से नंदू मान गया और दूध पीकर घर पर ही रुक गया।

इंदू सब का काम खत्म करके, किसी से कुछ पैसों का इंतज़ाम कर एक चॉकबार आइसक्रीम खरीद कर जल्दी से घर पहुंची।नंदू चारौ खाने चित्त पड़ा था। इंदू उसे झकझोर रही थी क्योंकि आइसक्रीम पिघलती जा रही थी।

धीरे धीरे आइसक्रीम एक एक बूंद टपक रही थी। इंदू बेटे के सिरहाने बैठी बेटे के उठने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी।

आइसक्रीम की आखिरी बूंद भी जमीन पर टपक गयी। बिंदू के हाथ में अब केवल आइसक्रीम की लकड़ी बची थी। लेकिन नंदू अभी भी नहीं उठा।

मौलिक, अप्रकाशित एवम अप्रसारित

Views: 395

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on July 14, 2020 at 11:07am

हार्दिक आभार आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 7, 2020 at 9:33am

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on June 15, 2020 at 7:02pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब जी।आदाब।यह एक प्रतीकात्मक शैली की लघुकथा है। इसमे बिंदु सरकार का प्रतीक है और नंदू जनता का प्रतीक है। सरकार द्वारा सुविधायें देने का तरीका और उसका हश्र देखिये। इसका यही मर्म है।एक बार इस नज़रिये से देखिये।

Comment by Samar kabeer on June 15, 2020 at 6:40pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service