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आपन दुःख केकरा से कही ,
इहा के बाटे सुने वाला ,
हर तरफ अन्धिआर भइल बा ,
धधकत बा दहेज के ज्वाला ,

बेटी के बाप त हमहू बानी ,
बड़ी मुश्किल से पढ़वले बानी ,
हम खइनी आधापेट हरदम ,
बेटी के करौनी हमहू बी कॉम ,

लईका बढ़िया खोजत बानी ,
दहेज़ के बिना बाटे परेशानी ,
अब सोचत बानी काहे पढ़वनी,
जन्मते काहे ना नमक चटवनी,

मर गइल रहित इहो तबही ,
इ परेशानी ना आइत अबही ,
एय लईका वाला तनी बुझs ,
हमहू पढ़वनी तनिका समझs ,

जवन कमाई तुहू पईबs ,
हमरा घरे नाही पेठइबs ,
आउर एक बात बाबू तू जान ,
लईकी लईका में अंतर ना रख ,

लईकी बिन तोहर लईका कुवारा ,
ना मिली दुल्हिन बनी आवारा ,
तब तुहू खूब पछतइबs ,
तब तुहू गुरु के संगे ना पईबs ,

तब तुहू कहबs भाई हमार हो ,
आपन दुःख केकरा से कही ,
इहा के बाटे सुने वाला ||

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Replies to This Discussion

लईका बढ़िया खोजत बानी ,
दहेज़ के बिना बाटे परेशानी ,
अब सोचत बानी काहे पढ़वनी,
जन्मते काहे ना नमक चटवनी,


गुरु जी बहुत ही सुंदर कविता लिखले बानी आ काफ़ी शिक्षाप्रद भी, पुरुष और स्त्री त समाज के चलावे खातिर ज़रूरी पहिया बा आ एक दूसरा के पूरक भी, बिना एक दूसरा के सृष्टि के कल्पना भी ना काल जा सकत बा , पर आज कुछ कुरीति के वजह से लड़की के पिता के सोचे के पड़त बा , बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति बा , एक शानदार प्रस्तुति, जय हो,
रवि जी, प्रणाम ।

बहुत शानदार प्रस्तुती बा । हमनी के समाज के आज ईहे विडम्बना बा कि लइका आ लइकी में फरक कइल जाता । एह बात से मन बहुत विचलित होखेला कि अगर केहू लइका के पिता बा तऽ ओकरा ई काहे ना समझ में आवेला कि ऊ अपना लइका के पालन-पोषण करे में जेतना कष्ट उईठवले बा कवनो लइकियो के माई-बाप ओतने कष्ट उठवले होखी । अगर ऊ अपना लइका के पढाई करवावे खातिर खरचा कइले बा तऽ लइकियो के माता-पिता ओतने खरचा कइले बा । तऽ फेर दहेज के प्रश्न बीच में काहे खड़ा हो जात बा । अपना समाज से ई बुराई दूर करे खातिर तऽ केहू बाहर से ना आई । अपना समाज के लोग के ही एह बुराई के दूर करे खातिर आगे आवे के परी । एकरा खातिर नवका पीढ़ी में जागरूकता ले आवे के परी ।
Ravi ji
Aapne nischit hi samaj ki haqikat uzagar ki hai, yahi sachhai hai.
"Ati-Uttam".
राउर रचना बड नीमन बा
really supurb....thnx

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