For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2212 1212 2212 1212

यूँ तो ये माहेरीन हैं मशहूर हैं ज़हीन हैं
फिर रगड़ें क्यों ज़मीन में कुर्सी को ये जबीन हैं


संसार है विचित्र यह नाकाम कामयाब सब
जो माहिर और ज़हीन हैं वह आज दीनहीन हैं


हर बात में है नुक़्ताचीं सर गर्मियों में है ख़लल
अक्सर ज़हीन लोग ही नाक़ाबिल-ए-यक़ीन हैं


बंदिश हज़ार थोप दीं तुम ये करो न वो करो
क्यों लड़कियां समाज में समझी गयीं रहीन हैं


जम्हूरियत तो नाम है चलता है हुक्म शाहों का
सब ऊंचे ऊंचे ओहदों पे इनके लवाहिक़ीन हैं


सब हुक्मरां हैं जेब में ज़ालिम खुले में घूमते
जो ज़ुल्म हों रिआया पे राजा तमाशबीन हैं


सर पर न सायबाने हैं खानाबदोश ज़िंदगी
अपने वतन में रह के भी हम क्यों मुहाजिरीन हैं


होती सियासत आजकल 'नोटों' के रंग रूप पर
नीले मिले यसार हैं पीले मिले यमीन हैं


ताउम्र दिल दिया नहीं वापस वो आज माँगते
आए जनाज़े में मेरे कितने मुनाफ़िक़ीन हैं


आए थे ख़्वाब में अभी बोसा लिया ओ चल दिये
अब तक हैं शीरीं लब मेरे लब उनके अंगबीन हैं


तुझसे मिले ख़ुशी हुई पर थी उदासी भी 'क़दम'
तू सुबोह सुबोह जाएगा तेरे बयां मुबीन हैं


माहेरीन...माहिर का बहुवचन
रहीन...गिरवी
लवाहिक़ीन... सगे संबंधी, निजी
मुहाजिरीन ..शरणार्थी
यसार..बाएं
यमीन..दाहिने
मुनाफ़िक़ीन..पाखंडी, ढौंगी
मुबीन..स्पष्ट

क़दम जयपुरी
जयपुर
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

Views: 656

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Om Prakash Agrawal on May 20, 2020 at 7:34pm
आदरणीय
जी सराहना हेतु सहृदय आभार एवं धन्यवाद आदरणीय
Comment by नाथ सोनांचली on May 20, 2020 at 4:00pm

आद0 ओम प्रकाश अग्रवाल जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। उर्दू शब्दों से लबरेज। बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by Om Prakash Agrawal on May 18, 2020 at 12:27pm
आदरणीय
प्रशंसा हेतु साभार धन्यवाद ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2020 at 12:19pm

आ. भाई ओमप्रकास जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Om Prakash Agrawal on May 16, 2020 at 4:53am
आदरणीय कबीर साहब
सराहना और बहुमूल्य सुझावों के लिये सहृदय आपार। आपके सुझावानुसार सुधार कर लेंगे।
पुनश्च आभार
Comment by Samar kabeer on May 15, 2020 at 8:19pm

जनाब क़दम जयपुरी जी आदाब,मुश्किल क़वाफ़ी में ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।


'हर बात में है नुक़्ताचीं सर गर्मियों में है ख़लल'

इस मिसरे में '
हर बात में है नुक़्ताचीं सर गर्मियों में है ख़लल

इस मिसरे में 'नुक़्ताचीं' में 'क' 

के नीचे नुक़्ता नहीं लगेगा ।

'सब ऊंचे ऊंचे ओहदों पे इनके लवाहिक़ीन हैं'

इस मिसरे में 'ओहदों' को "उहदों" कर लें ।


'सर पर न सायबाने हैं खानाबदोश ज़िंदगी'

इस मिसरे में 'सायबाने' को 'साइबान'' कर लें ।


'तू सुबोह सुबोह जाएगा तेरे बयां मुबीन हैैं'

इस मिसरे में 'सुबोह सुबोह' को "सुब्ह सुब्ह" कर लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service