For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘सीते ---- ?’

‘कौन --- स्वामी ?’

‘नही मैं अभाग्य हूँ I’

‘ तो मुझसे क्या चाहती हो ?’

‘मैं कुछ चाहती नहीं , मैं तो तुम्हे सावधान करने आयी हूँ I ‘

‘किस बात के लिए ?’

‘तुम्हारा राम से बिछोह होगा I ‘

‘वह  क्यों ?’

‘तुमने पाप किया है , इसलिए ‘

‘कैसा पाप ?’

‘तुमने राम के साथ वन जाने का हठ  किया i तब तुमने क्या कहा था , याद है ?’

‘नहीं , क्या कहा था ---?’

‘तुमने कहा था , प्रिय वियोग के समान संसार में कोई  दुःख नहीं है I पति  के बिना देवलोक  नरक के समान है I माता-पिता, भाई-बहन, परिवार , इष्ट -मित्र , सास-ससुर, गुरुजन यहाँ तक कि अपना पुत्र भी  बिना पति के सूर्य से अधिक दाहक है I शरीर, धन-धाम , धरती, अयोध्या का  राज्य सब शोक का समाज है I नाना प्रकार के भोग, रोग के सदृश हैं  I संसार यम-यातना के समान है i बिना प्राणनाथ के संसार में कुछ भी सुखदायक नही है I पति  के बिना नारी बिना प्राण के शरीर और बिना जल की  नदी के तुल्य है और पति  के साथ रहने पर सारे सुख सुलभ हैं I वन के सारे कष्ट और भय पति  के वियोग के सामने लवलेश मात्र हैं  I’

‘हाँ  कहा था , इसमें गलत क्या है ?’

‘क्या उर्मिला पर यह सब बातें लागू नही होती थी I तुम तो उसकी बड़ी बहन थी I उस पर तुम्हें रंच भी दया नही आयी I ‘

‘ओह ---लेकिन ----‘

‘लेकिन-वेकिन  कुछ नहीं, न राम ने  भाई के बारे में सोचा और न तुमने  बहन के  I छी : कितने स्वार्थ में थे तुम दोनों I तुम्हे उनका त्याग भी नही दिखा I किसके लिए किया उन्होंने वह त्याग ?’ छोटे ने बड़े भाई के लिए I छोटी बहन ने बड़ी बहन के लिए I उर्मिला तो फिर मानवी थी और तुम दैवीय फिर ऐसा अनाचार I इसका दंड तो तुम दोनों को भुगतना ही पड़ेगा i वह  भी एक  नही  कई  बार I ‘

‘नही-नही ऐसा न कहो , उस समय मेरी आँखों पर पर्दा पड़  गया था I ‘- सीता चीख उठी I

‘क्या हुआ सीते ?’- राम पर्णकुटी में उठकर बैठ गए –‘ कोई  दु:स्वप्न था  क्या ?’

‘हाँ , स्वामी ,  वह दु:स्वप्न ही था  I’

(मौलिक/ अप्रकाशित )

 

 

Views: 551

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 24, 2019 at 1:48pm

आ०  सरना जी आपकी स्नेहिल तीफेतु सादर आभार I 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 24, 2019 at 1:47pm

आ० समर कबीर सर , बहु आभार आपका I 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 24, 2019 at 1:47pm

आ० तेजवीर जी , आपका बहुत बहुत शुक्रिया I 

Comment by Sushil Sarna on September 23, 2019 at 7:31pm

वाह आदरणीय इस अनुपम गहन अभिव्यक्ति से युक्त लघु कथा के लिए दिल से बधाई।

Comment by Samar kabeer on September 23, 2019 at 2:21pm

जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 20, 2019 at 7:53pm

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी। बेहतरीन प्रस्तुति।एक पौराणिक प्रसंग को अति सुंदर तरीके से लघुकथा में पिरोने के लिये साधुवाद।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
9 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service