For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वादियाँ ख़ामोश ख़ामोशी भरा है ये सफ़र

वादियाँ ख़ामोश ख़ामोशी भरा है ये सफ़र

अब दरख़्तों से भी हम डरने लगे हैं किस क़दर

यूँ मचा कर शोर करते हैं परिंदे अहतिजाज

इस जगह पर ही हुआ करता था अपना एक घर'

जिस जगह हमने गुज़ारी थी महकती शाम, अब

ज़ह्र फैला उस जगह  तो कैसे हम रोकें असर

फूल भी बेनूर से क्यों दिख रहे हैं बाग में

ख़ूबसूरत से चमन कोतो खा गयी किसकी नज़र

वो पुराने दिन हमें जब याद आते हैं कभी

ढूँढने लगते हैं हम फिर से वही खोई डगर

आज बंदिश है हवाओं पर तो वो कैसे बहें

कौन लाएगा यहाँ ख़ुशियों भरी कोई ख़बर

कोई भी अब क्या करे हालात ही ऐसे हुए

बन गया जो बागबाँ बदली उसी की है नज़र

पर छँटेगी धुँध ये भी सुर्ख़ होगा आसमाँ

रात लंबी है मगर बदलेगी सूरत फिर 'अमर'

"मौलिक व अप्रकाशित"

आदरणीय समर क़बीर साहेब की इसलाह के अनुरूप :कुछ सुधार के बाद: 

Views: 456

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on June 2, 2019 at 5:57pm

आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी, दिल से शुक्रिया। 

Comment by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on June 2, 2019 at 5:56pm

आदरणीय समर क़बीर सर, प्रणाम।

आपने इतनी तफ़सील से इसलाह करके मेरे तुकबंदियों को ग़ज़ल के रूप में ढाल दिया। मैं कृतज्ञ हूँ। आशा है, हमेशा आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा और मैं भी ग़ज़ल कहना सीख लूँगा।

प्रणाम। 

Comment by Samar kabeer on May 31, 2019 at 11:31pm

जनाब डॉ. अमर नाथ झा साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।

'अब दरख़्तों से भी डरने लग गए हम किस क़दर'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

अब दरख़्तों से भी हम डरने लगे हैं किस क़दर'

'ये परिंदे आज चुप रहकर गवाही दे रहे

इस जगह पर भी हुआ करता था अपना एक घर'

इस शैर के ऊला में 'चुप रह कर गवाही देने की बात समझ नहीं आती,और सानी मिसरे में 'भी' शब्द भर्ती का है,शैर यूँ कर सकते हैं:-

'यूँ मचा कर शोर करते हैं परिंदे अहतिजाज

इस जगह पर ही हुआ करता था अपना एक घर'

'तब गुज़ारी थी महकती सी कई शामें यहाँ

ज़ह्र फैला हर तरफ़ अब कैसे हम रोकें असर'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।

'फूल भी बेनूर ही क्यों दिख रहे हैं बाग में

ख़ूबसूरत से चमन को लग गई किसकी नज़र'

इस शैर के ऊला में 'ही' शब्द भर्ती का है,और सानी में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,इस शैर को यूँ कर सकते हैं:-

'फूल भी बेनूर से क्यों दिख रहे हैं बाग में

ख़ूबसूरत से चमन को खा किसकी नज़र'

'आज बंदिश फ़िर हवाओं पर तो वे कैसे बहें

कौन लाएगा मुबारक सी कभी कोई ख़बर'

इस शैर को यूँ कर लें, गेयता बढ़ जाएगी:-

'आज बंदिश है हवाओं पर तो वो कैसे बहें

कौन लाएगा यहाँ ख़ुशियों भरी कोई ख़बर'

Comment by narendrasinh chauhan on May 29, 2019 at 2:31pm

सुन्दर रचना

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
2 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service