For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुंतजिर हूँ मैं इक जमाने से।
आ जा मिलने किसी बहाने से।।

उनकी गलियों से जब भी गुजरा हूँ।
ज़ख़्म उभरे हैं कुछ पुराने से।।

दिल की बातें ज़ुबां पे आने दो।
कह दो! मिलता है क्या छुपाने से।।

मेरे घर भी कभी तो आया कर।
ज़िन्दा हो जाता तेरे आने से।।

इश्क़ की आग राम है ऐसी।
ये तो बुझती नहीं बुझाने से।।

मौलिक/अप्रकाशित

राम शिरोमणि पाठक

Views: 1019

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on May 28, 2018 at 12:18pm

इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 23, 2018 at 7:15pm

हार्दिक बधाई , आदरणीय..

Comment by ram shiromani pathak on May 23, 2018 at 1:13pm

नीलेश भाई बहुत बहुत आभार अपकल

Comment by ram shiromani pathak on May 23, 2018 at 1:12pm

आरिफ़ भाई  उत्साह वर्धन हेतु आभार आपका

Comment by ram shiromani pathak on May 23, 2018 at 8:19am

ग़ज़ल।।

मुंतजिर हूँ मैं इक जमाने से।
मिलने आ जा किसी बहाने से।। आ जा मिलने भी ठीक लग रहा है मुझे

उनकी गलियों से जब भी गुजरा हूँ।
ज़ख़्म उभरे हैं कुछ पुराने से।।

दिल की बातें ज़ुबां पे आने दो।
कह दो! मिलता है क्या छुपाने से।।

मेरे घर भी कभी तो आया कर।
साँसे आती है तेरे आने से।।मैं जी उठता हुुु तेरे आने से

इश्क़ की आग राम है ऐसी।
ये तो बुझती नहीं बुझाने से।।

बहुत बहुत आभार आदरणीया सुझाव व अनुमोदन हेतु।।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 22, 2018 at 8:13pm

आ. राम शिरोमणि जी,
ग़ज़ल के लिए बधाई... और थोडा वक़्त दीजिये ..कई मिसरे और निखरेंगे 
सादर 

Comment by Mohammed Arif on May 22, 2018 at 6:52pm
आदरणीय राम शिरोमणि जी आदाब,
बहुत ही रोमाण्टिक अंदाज़ की ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । जमाने/ज़माने देखिएगा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आदरणीया राजेश कुमारी जी की इस्लाह का संज्ञान लें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 22, 2018 at 6:05pm

अच्छी ग़ज़ल कही है बधाई आपको राम भैया 

जहाँ कहीं सुधार चाहती है उसकी कोशिश कर  रही हूँ 

मुंतजिर हूँ मैं इक जमाने से।
आ जा मिलने किसी बहाने से।।------मिलने आजा किसी बहाने से 

मेरे घर भी कभी तो आया कर।
ज़िन्दा हो जाता तेरे आने से।।-----इसमें बार बार मात्रा गिराने से ली गड़बड़ है 

मिलती/आती  साँसे तेरे ही आने से 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service