For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- सितारे रक़्स करते हैं

1222 1222 1222 1222

उन्हें देखें जो बेपर्दा सितारे रक़्स करते हैं।
नज़र जो उनकी पड़ जाए नज़ारे रक़्स करते हैं।।

तेरे पहलू में होने से शबे दैजूर भी रौशन।
बरसती चाँद से खुशियाँ सितारे रक़्स करते हैं।।

तुम्हे है इल्म मेरी जिंदगी कुछ भी नही तुम बिन।
इन्हीं वजहों से तो नख़रे तुम्हारे रक़्स करते हैं।।

कभी तो तुम ही आओगे शबे हिज़्रां मिटाने को ।
इसी उम्मीद से अरमां हमारे रक़्स करते हैं।।

जड़ों की कद्र तो केवल समझते हैं वही पत्ते।
शज़र की टहनियों के जो सहारे रक़्स करते हैं।।

उसी की जीत है यारों लड़े खामोश रहकर जो।
सफीने डूब जाते हैं किनारे रक़्स करते हैं।।*

करूं मैं शुक्रिया कैसे तेरे अहसान हैं कितने।
पवन के शेर भी तेरे सहारे रक़्स करते हैं।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

* जनाब आफ़ताब अकबराबादी की ग़ज़ल का मिसरा

रक़्स= नृत्य, नाच
शबे दैजूर= अमावस की रात
इल्म= जानकारी
शबे हिज़्रां= विरह की रात
शज़र= पेड़
सफ़ीने= जहाज, जलपोत

Views: 801

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ पवन मिश्र on September 25, 2016 at 7:37am

आद. शिज्जु जी,,, इस उत्साहवर्धन के लिये हृदय से आभार

Comment by डॉ पवन मिश्र on September 25, 2016 at 7:36am

आद. रामबली जी,,,, ग़ज़ल को मान देने के लिए बहुत बहुत आभार

Comment by डॉ पवन मिश्र on September 25, 2016 at 7:35am

आद. गिरिराज जी। इस् हौसला अफजाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया

Comment by डॉ पवन मिश्र on September 25, 2016 at 7:34am

आद. डॉ प्राची जी, ग़ज़ल और शेर को मान देने के लिए हृदयतल से आभार

Comment by डॉ पवन मिश्र on September 25, 2016 at 7:31am

आद. सुरेश कुमार कल्याण जी तहे दिल से शुक्रिया

Comment by डॉ पवन मिश्र on September 25, 2016 at 7:31am

आद. रवि जी इस् उत्साहवर्धन के लिये हृदय से आभार

Comment by रामबली गुप्ता on September 22, 2016 at 4:41am
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आद0 पवन जी। बल भर बधाई लीजिये।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2016 at 6:56pm

आदरणीय पवन भाई , मुश्किल रदीफ पर बहुत खूबसूरत शेर निकाले आपने , दिल से बधाइयाँ आपको ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 21, 2016 at 5:07pm

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल..

सभी अशआर मुलायमियत से दिल तक पहुँच रहें हैं....

तुम्हे है इल्म मेरी जिंदगी कुछ भी नही तुम बिन।
इन्हीं वजहों से तो नख़रे तुम्हारे रक़्स करते हैं।।... ये शेर बतौरेखास पसंद आया 

बहुत बहुत मुबाराकबात इस सुन्दर पेशकश पर आ० पवन जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2016 at 2:48pm

आ. पवन मिश्रा जी अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारक़बाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service