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उड़नेवाले इक परिंदे का मुकद्दर देखिये- ग़ज़ल

2122 2122 2122 212
नातवाँ जिस्म और ये बिखरे हुये पर देखिये
उड़ने वाले इक परिन्दे का मुकद्दर देखिये

बीज मैंने बो दिया है हसरतों के खेत में
मुझको कब होती है फ़स्ले गुल मयस्सर देखिये

किस तरफ़ ले जा रहा है आपको ये रास्ता
रुकिये थोड़ा, और नज़रों को घुमाकर देखिये

दिल हुआ जाता है मेरा आइने सा पुरख़ुलूस
फूल मिलते हैं मुझे या कोई पत्थर देखिये

दूसरों में ऐब कोई ढूँढते हैं आप गर
मशविरा है मेरा पहले अपने अंदर देखिये

ये हकीकत है या अपनी आगही का है गुमाँ
आप अपने दायरे से आके बाहर देखिये

कद्र भी करने लगेगी ज़िन्दगी फिर आपकी
दूसरों की ज़िन्दगी अपने बराबर देखिये

नातवाँ-कमज़ोर, पुरख़ुलूस-निष्कपट, आगही-ज्ञान

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 29, 2016 at 10:11pm

ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं आदरणीय शिज्जू जी। दाद कुबूल  कीजिए।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 29, 2016 at 6:25pm

बहुत ख़ूब 

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 29, 2016 at 1:06pm
हकीकत है या अपनी आगही का है गुमाँ
आप अपने दायरे से आके बाहर देखिये।

बधाई बहुत सुंदर कहा
Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 11:09am

दूसरों में ऐब कोई ढूँढते हैं आप गर
मशविरा है मेरा पहले अपने अंदर देखिये------वाह !  क्या  खूब कही  है  आपने !   सभी  अशआर  एक  से  बढ़कर एक  बने है . बधाई  आपको आदरणीय शिज्जु शकूर जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 28, 2016 at 10:50am

आ० भाई  शिज्जु शकूर जी,इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हृदयतल से बधाई l

Comment by Samar kabeer on March 27, 2016 at 6:32pm
जनाब शिज्जु शकूर जी आदाब,बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ ।
Comment by amita tiwari on March 27, 2016 at 6:12pm

उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

Comment by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 2:42pm
वाह वाह वाह क्या बात है। बहुत ही उम्दा ग़ज़ल के लिए हृदयतल से बधाई स्वीकार करें।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 27, 2016 at 11:00am
आदरणीय तेजवीर जी एवं वंदना जी आपका तहेदिल से शुक्रिया
Comment by vandana on March 27, 2016 at 9:47am

bahut badhiya gazal aadrniy shijju ji 

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