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बाकी सब कुछ अच्छा है|---बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'

अरकान -   2 2   2 2    2 2   2 2     2 2   2 2   2 2   2    

तेरे बिन घर वन लगता है बाकी सब कुछ अच्छा है|

तुझ बिन बेटे जी डरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|

 

माँ तेरी बीमार पड़ी है गुमसुम बहना भी रहती,

भैया का भी हाल बुरा है  बाकी सब कुछ अच्छा है|            

 

दादी तेरी बुढिया हैं  पर चूल्हा-चौका हैं  करती,                                      

कोई न उनका दुख हरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|

 

दादा जी पूछा करते हैं अक्सर तेरे बारे में,

आँख से उनको कम दिखता है बाकी सब कुछ अच्छा है|

 

अन्न न उपजा खेतों में और मालगुजारी है बाक़ी,

गैया घर में भूखी बैठी बाकी सब कुछ अच्छा है|

 

तू बैठा परदेस यहाँ पर बहना शादी जोग हुई

सोच के मेरा जी डरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|

 

समय मिले तो आना बेटा मुनिया को भी साथ लिए,

मिलने को बस जी करता है बाकी सब कुछ अच्छा है|

 

मत करना तू चिंता घर की खुश रहना तू लाल वहाँ,

और मैं ज्यादा क्या कह सकता बाकी सब कुछ अच्छा है|

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2015 at 3:00pm

गैया घर में भूखी बैठी बाकी सब कुछ अच्छा है|

और मैं ज्यादा क्या कह सकता बाकी सब कुछ अच्छा है|   ---------इनका काफिया देख लीजिये बाकी  सब कुछ  अच्छा हैI  .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 16, 2015 at 11:33pm

ग़ज़ल पर आपकी कोशिश के लिए हार्दिक बधाई, बैजनथ शर्मा मिण्टू जी.  आप ग़ज़ल के मूलभूत नियमों को भी पढ़ते चलें. बहुत लाभ होगा.  कई महत्वपूर्ण आलेख इस मंच पर मिल जायेंगे. 

आपकी इस ग़ज़ल में क़ाफ़िया सही नहीं हो पाया है. इसे देख लें. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 16, 2015 at 5:52pm

आदरणीय भंडारी साहेब......... शुक्रिया|

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 16, 2015 at 5:51pm

आदरणीय मिथलेश वामनकर जी....... शुक्रिया|

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 16, 2015 at 5:50pm

आदरणीय पंकज कुमार जी ....... शुक्रिया|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 16, 2015 at 3:47pm

आदरणीय बैज नाथ भाई , बहुत अच्छी और मार्मिक ग़ज़ल हुई है , दिली बधाइयाँ कुबूल करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 15, 2015 at 10:05pm

आदरणीय बैजनाथ जी शानदार मुसल्सल ग़ज़ल हुई है. बह्र को भी खूब निभाया है आपने. ग़ज़ल गुनगुनाकर आनंद आ गया. हर एक अशआर प्रभावित करता है इस प्रस्तुति पर बहुत बधाई. 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 14, 2015 at 9:59am
2 मात्राएँ कम हैं, बाकि सब कुछ अच्छा है

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