For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पाँव में है कील पर रुकना मना है,

पाँव में  है पीर पर  रुकना मना है,
प्रगति की राहों में चल थकना मना है ।
--
छांव को छोड़ो पचाओ धूप को तुम ,
गिड़गिड़ा चहुं ओर अब तकना मना है।
--
दांव चलने में लगा हर एक मोहरा,
बेवजह यूं मौन रह, छलना मना है ।
--
उत्साह  के रंग में रंगा जो दिल तिरा ,
निःस्वांस में आलस्य को भरना मना है ।
--
सत्यजीवन भर जिया ले घाव दिल पे 
अवसाद में भी धाव का रिसना मना है ।
--
काफिले गर चल पड़े भरने उजाले ,
एक भी दीपक का अब बुझना माना है ।
--
"कल्प"छोड़ो चैन, मन धारो सजगता,
भूल में भी आँख का मलना मना है ॥ 
--
मौलिक व अप्रकाशित 
कल्पना मिश्रा बाजपेई 
21/10/15 

Views: 1120

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kalpna mishra bajpai on October 26, 2015 at 8:53pm

आदरणीय राजेश कुमारी दीदी आपको रचना पसंद आई मुझे हर्ष है ।सादर आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 26, 2015 at 9:47am
जीतने में सत्य को मिलते रहे है घाव भी,
अवसाद में भी धाव का रिसना मना है ।---वाह  क्या बात है 
बहुत बढ़िया प्रस्तुति कल्पना जी ,दिल से बधाई लीजिये 

 

Comment by kalpna mishra bajpai on October 23, 2015 at 11:49am

आदरणीय  मिथिलेश वामनकर  जी आभार आपका /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on October 23, 2015 at 11:48am

आदरणीया kanta roy  जी आभार आपका /सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 22, 2015 at 11:53pm

आदरणीया कल्पना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर 

Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 10:21pm
छांव को छोड़ो पचाओ धूप को तुम ,
गिड़गिड़ा चहुं ओर अब तकना मना है।.....

लाजवाब पंक्तियाँ हुई है यहाँ आदरणीया कल्पना मिश्रा जी । जीवन के कठिन रास्तों का जिक्र ऐसा छेड़ा है आपने कि मेरे पैरों में भी कुछ कील सा चुभने का एहसास दे गया है । रचना वही सार्थक जिसे हर पढने वाला स्वंय के लिए ही रचित जाने । हृदय से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by kalpna mishra bajpai on October 22, 2015 at 4:00pm

आभार आदरणीय Sushil Sarna  जी आपका 

Comment by kalpna mishra bajpai on October 22, 2015 at 3:59pm

आभार आदरणीया pratibha pande  जी आपका 

Comment by kalpna mishra bajpai on October 22, 2015 at 3:58pm

आभार आदरणीय Ajay Kumar Sharma जी आपका 

Comment by Sushil Sarna on October 22, 2015 at 3:44pm

पाँव में है कील पर रुकना मना है,
प्रगति की राहों में चल थकना मना है ।
… वाह आदरणीया कल्पना जी बहुत सुंदर भावों को आपने अपनी प्रस्तुति में चित्रित किया है … हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
9 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service