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जो छला जाए कभी विश्वास मत देना

मौत देना मौत का अहसास मत देना, 
जो छला  जाए कभी विश्वास मत देना ।

पंख दे पाओ नहीं गर तो वही अच्छा
सामने मेरे खुला आकाश मत देना।

दश्त देना, धूप देना , गरमियाँ देना
ऐसे में लेकिन खुदाया प्यास मत देना ।

है हमे मंजूर अंधेरा उम्र भर का
जुगनुओं से ले मुझे प्रकाश मत देना ।
---------------
नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 8:47pm

आप संवेदनशील रचनाकार हैं. ग़ज़ल पर हुआ प्रयास आश्वस्त करता है.

सुधीजनों के कहे पर ध्यान देंगे, यह कहने की आवश्यकता भी नहीं है.

शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 28, 2015 at 8:15pm
आदरणीय नीरज जी इस प्रस्तुति पर बधाई।
कम से कम 5 अशआर होते तो अच्छा था।
दो मिसरों में काफ़िया नहीं मिल रहा है।
सामने मेरे गगन आभास मत देना
जुगनुओं से ले मुझे उजियास मत देना
ऐसा कुछ संशोधन निवेदित है।
सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 28, 2015 at 5:34pm

आदरणीय ..आपकी ग़ज़ल के भाव पसंद आये ..आदरणीय बागी जी ने गलती की तरफ इशारा कर ही दिया है ..इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधायी सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 28, 2015 at 1:50pm

आ० श्याम नारायण जी

अच्छी कोशिश i काफिया बंदी त्रुटिपूर्ण .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 28, 2015 at 1:16pm

खुबसूरत प्रयास है इसके लिए बहुत बहुत बधाई, 'श' और 'स' के उच्चारण में अंतर है इसलिए काफिया बाँधने में सावधानी की आवश्यकता है.  

Comment by Neeraj Neer on May 28, 2015 at 1:05pm

आ .  Shyam Narain Verma जी आपका हार्दिक आभार ... 

Comment by Neeraj Neer on May 28, 2015 at 1:04pm

बहुत शुक्रिया आ॰ narendrasinh chauhan  जी । 

Comment by Shyam Narain Verma on May 28, 2015 at 11:55am
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!
Comment by narendrasinh chauhan on May 28, 2015 at 10:10am

बहोत खूब उम्दा ग़ज़ल

Comment by Neeraj Neer on May 28, 2015 at 9:02am

......हार्दिक आभार Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी .. 

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