For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“ मैंने यह सब कुछ अपनी मजबूरी में किया है, जज साहब. मृतक मेरा सगा भाई ही था, उसने मेरा जीना हराम कर दिया था. धोखे से मेरी जमीन हड़प ली और मैं अपने पत्नी और बच्चों के साथ सड़क पर आ गया था. भूखों मरने की नौबत आ गई थी, साहब..” उसने अपने भाई की हत्या का गुनाह कुबूल करते हुए अदालत में अपना बयान दिया

“ लेकिन, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार तुमने अपने भाई को सुबह ५ बजे ही खेत पर, गला घोंटकर मार डाला फिर तुम दोपहर में उस लाश को खीचकर कहा ले जा रहे थे..” सरकारी वकील ने कटघरे में खड़े, अपराधी से पूछा

“ साहब!! मैंने उसे सुबह मौका देखकर मार तो डाला और भाग निकला. पर मुझे बाद में बहुत दुःख हुआ. दोपहर में धूप बहुत तेज थी, सोचा जैसा भी था, मेरा भाई ही था. मैं उसे छाँव में घसीट कर ले जारहा था, तभी गाँव वालों ने मुझे...”

 

   जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 793

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 28, 2015 at 10:09am

आदरणीय सौरभ जी. आपकी उपस्थिति व् प्रोत्साहन ,मनोबल को दोगुना कर गया. कुछ दिनों से गाँव पर ही था ,जहाँ कई बार बड़ों के मुख से एक बात बार-बार सुनने को मिली कि ' अपना मारकर छाँव में पटकता है' बस! फिर यह रचना लिख डाली.

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 26, 2015 at 11:38pm

दो भाइयों की परवरिश किन हालात में हुई है और उनकी ज़िन्दग़ी किन हालात में आगे बढ़ती है, दोनों दो बातें हैं. जीने के क्रम में आगे के जीवन में व्यक्तिगत आवश्यकताएँ और स्वार्थ हावी होते जाते हैं. किन्तु, शैशवावस्था में घटी बातों के कई विन्दु उनके मन में इतना गहरा प्रभाव बना चुके होते हैं कि जीवन की पारस्परिक तारतम्यता टूट भले जाये, कभी विलीन नहीं होती.
इस मनोवैज्ञानिक पहलू का बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण हुआ है.
इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें, भाई जितेन्द्र जी.
शुभेच्छाएँ.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 18, 2015 at 10:31am

आदरणीय श्याम नारायण जी, प्रोत्साहन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 18, 2015 at 10:31am

आदरणीय डा.गोपाल जी. यह लघुकथा आज के समय में जहाँ सिर्फ स्वार्थ है यथार्थ भी बनती है. लघुकथा के माध्यम से महज मानव मनोभाव को उजागर किया है. जो बहुत कुछ गलत सहकर, उस परिणाम तक पहुचता है जिसे अंजाम नही देना चाहता है पर बाद में अफ़सोस होना तय है. आपके मार्गदर्शन की सदा अपेक्षा रहती है ,सर

सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 16, 2015 at 9:12pm

आ० जीतू जी

लोक प्रतिक्रिया जो भी हो पर मुझे यह कथा यथार्थ परक नहीं लगी  I हत्या जैसे जघन्य अपराध के पूर्व भाई का खून पानी क्यों बना रहा ? आपसे बहुत अच्छी कथाएँ मिली है  i इसीलिये अपेक्षाएं भी बहुत हैं . आपको स्नेह और आशीष .

Comment by Shyam Narain Verma on May 16, 2015 at 11:59am
सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2015 at 11:04am

आदरणीय गिरिराज जी. लघुकथा पर आपकी स्वीकारोक्ति हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2015 at 11:02am

आदरणीया नेहा जी. आपका बहुत-बहुत आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2015 at 11:01am

आदरणीय हरिप्रकाश जी. आपके प्रोतसाहन से बहुत मनोबल मिलता है, आपका हार्दिक आभार

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 16, 2015 at 10:23am

खून बोलता है , ज़रूर बोलता है ! आ. जीतेन्द्र भाई , अच्छी लगी आपकी लघुकथा ! आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
23 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service