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आदरणीय सूबे सिंह सूजान जी, इस सुन्दर रचना पर बधाई प्रेषित ! सादर
आदरणीय सूबे सिंह जी सुन्दर ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई
आदरणीय गिरिराज सर की सलाह अच्छी है उससे मैं भी सहमत हूँ.
एक निवेदन है ग़ज़ल की बह्र का वज्न 212x4 अवश्य लिख दे
मंजिलों की तरफ दौड़ते -दौड़ते,
जिंदगी कट गई बेबसी रह गई
सुंदर शे'रों के जरिए कुछ सम्वेदनाओं और कुछ जीवन-सत्यों को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया आप ने ,बधाई
आदरनीय सूबे सिंह भाई , बहुर सुन्दर गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ॥
वो हवा हो गई एक पल में कंही
 मुस्कुराहट यहाँ गूँजती रह गई      ---- इस शे र में ,मुस्कुराहट की जगह  खिलखिलाहट  क्या अच्छा नहीं रहेगा ? क्योंकि आगे बात गूंजने की हो रही है ॥
सुंदर रचना के लिए बधाई ...........................
 वो हवा हो गई एक पल में कंही
 मुस्कुराहट यहाँ गूँजती रह गई
 मंजिलों की तरफ दौड़ते -दौड़ते,
जिंदगी कट गई बेबसी रह गई------------------सुन्दर रचना  आ० सुजान जी .
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