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 2122 1212 22

झूठ ही बन गया है आँचल क्या

धूप लगने लगी है अफ़्ज़ल क्या                         (अफ़्ज़ल –भला)

 

अक्ल की बंद खिड़कियाँ खोलो

टाट लगने लगा है मखमल क्या

 

जो मुहब्बत दिखा रहे हो आज

दिल में कायम रहेगा ये कल क्या

 

किस्से कुछ और थे हकीकत और

ये रवायात बदलीं पल-पल क्या

 

छटपटाहट सी क्यूँ है चेहरे पर

मच उठी दिल में कोई हलचल क्या

 

फर्ज़ अपना भुला दिया या फिर

आदतन हो गये हो निर्बल क्या

 

( मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2015 at 10:51am

मेरी रचना को समय देने एवं सराहने के लिये मैं आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ ऐसा ही स्नेह आगे भी बना रहे ये इल्तिजा है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2015 at 10:37am

जो मुहब्बत दिखा रहे हो आज

दिल में कायम रहेगा ये कल क्या

फर्ज़ अपना भुला दिया या फिर

आदतन हो गये हो निर्बल क्या   ---- बहुत बढ़िया अशआर  हुये हैं , आदरणीय शिज्जु भाई , दिली बधाइयाँ ।

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 26, 2015 at 1:39am

बहुत खूब आदरणी शिज्जू भाईजी..

यानि कि, तरह के मिसरे ने आपको खूब रोमांचित कर रखा है. यह अच्छा है.  ये ग़ज़ल भी वाकई अच्छी हुई है.
शुभ-शुभ

Comment by MAHIMA SHREE on January 25, 2015 at 11:11pm

वाह..... बहुत खूब  हर शेर लाजवाब..

Comment by somesh kumar on January 25, 2015 at 5:15pm

जो मुहब्बत दिखा रहे हो आज

दिल में कायम रहेगा ये कल क्या

हर शे'र काबिले-तारीफ़ है कोई समाजिक अर्थ में तो कोई राजनैतिक सन्दर्भों में सही चोट करता है |बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 25, 2015 at 2:37pm

//फर्ज़ अपना भुला दिया या फिर

आदतन हो गये हो निर्बल क्या//

वाह भाई वाह, सुन्दर शेर कहा है, ग़ज़ल अच्छी लगी, बधाई सिज्जू भाई.

Comment by Hari Prakash Dubey on January 24, 2015 at 7:26pm

आदरणीय शिज्जू शकूर जी बहुत सुन्दर ...

फर्ज़ अपना भुला दिया या फिर

आदतन हो गये हो निर्बल क्या......शानदार शब्द संयोजन ,बधाई आपको ! सादर 

Comment by Sushil Sarna on January 24, 2015 at 7:19pm

छटपटाहट सी क्यूँ है चेहरे पर
मच उठी दिल में कोई हलचल क्या

वाह शिज्जु भाई बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बन पड़ी है … हार्दिक बधाई।

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2015 at 6:37pm
आदरणीय शिज्जू शकूर जी बहुत सुन्दर गजल!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 24, 2015 at 1:13pm

शिज्जू भाई

हमेशा की तरह बेहतरीन i

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