For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्तों का अलंकार बनूँगी माँ

रिश्तों का अलंकार बनूँगी माँ

 

इंद्र्धनुष के समाये हें मुझमें सातों रंग

हर कली में ममता का श्रंगार करूंगी माँ।

बंद कली खिल जाने दे, नई सृष्टि रच जाने दे,

इस जग में आकर प्रकृति का उपहार बनूँगी माँ।

 

माँ तू अपना ही अस्तित्व मिटाने में लगी,

गुनहगार बन क्यूँ लिंगानुपात घटाने में लगी।

तेरे कलेजे का टुकड़ा हूँ, मैं तेरा ही तो मुखड़ा हूँ

आँगन में आकर तेरी पायल की झनकार बनूंगी माँ।

 

माँ तेरी ममता आज क्यूँ इस तरह बिखरने लगी

सारी इंसानियत तेरे इस कदम से सिहरने लगी.

बेशक तेरी कोख में बंद हूँ, पर मैं मुकम्मल छंद हूँ,

दुनियाँ में आकर रिश्तों का अलंकार बनूँगी माँ।

(मौलिक और अप्रकाशित) 

डॉ० ह्रदेश चौधरी                                                                                     

Views: 552

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 18, 2014 at 1:04pm

एक बहुत ही दर्दीले विषय पर अति सुन्दर, मार्मिक अभिव्यक्ति। बधाई, आदरणीया ह्र्देश जी।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2014 at 10:03pm

इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.. .

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 16, 2014 at 1:35pm

आदरणीया डॉ. साहिबा बेहद सुन्दर प्रस्तुति रचना का भाव दिल को छू गया. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

बेशक तेरी कोख में बंद हूँ, पर मैं मुकम्मल छंद हूँ,

दुनियाँ में आकर रिश्तों का अलंकार बनूँगी माँ। ... इन दो पंकियों पर विशेष बधाई स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 16, 2014 at 10:23am

अति सुंदर रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया हृदेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2014 at 8:49pm

आदरणीया , बहुत सुन्दर प्रस्तुति है ॥ आपको बधाई ॥

Comment by Savitri Rathore on January 15, 2014 at 8:19pm

अति सुन्दर हृदेश जी..... बधाई हो एक अच्छी रचना हेतु !

Comment by ram shiromani pathak on January 15, 2014 at 6:37pm

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया। ……।   हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 15, 2014 at 4:04pm

गर्भस्थ कन्या की माँ से जीवन की याचना बहुत सुन्दर लगी 

हार्दिक बधाई इस सार्थक सुन्दर रचना पर आ० डॉ० हृदेश जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service