जाग उठी सड़कें उन्हें बस सच बयानी चाहिए
कह दो संसद से न कोई लंतरानी चाहिए
देख तो ! मैं बिक गया उसकी वफ़ा के नाम पर
ऐ तिजारत ! अब तुझे नज़रें झुकानी चाहिए
मैं बना दूँ अपनी पेशानी पे सजदे की लकीर
तू बता तुझको दिलों पर हुक्मरानी चाहिए ?
धूप में जलना पड़ेगा फिर सुबह से शाम तक
जिद है बच्चों की उन्हें कुछ जाफरानी चाहिए
प्यार है तो आ मेरे माथे पर अपना नाम लिख
जिक्र जब मेरा हो तेरी बात आनी चाहिए
कर खसारा मैं भरे बाज़ार से उठने को हूँ
कह रहे हैं लोग थोड़ी बेइमानी चाहिए
मैं भी चुप हूँ तू भी तन्हा सोच मत पत्थर उठा
तु  भी  खुश, मेरे  लहू  को  भी  रवानी  चाहिए
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 .
 
 अरुन श्री !
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद ! :-))))))
बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है आ० अरुण श्रीवास्तव जी
हर शेर पर बधाई स्वीकार कीजिये
इस नायाब गज़ल को मैं दिल से स्वीकार करता हूँ. हर शेर पर बार-बार दाद है. बार-बार दाद.. दिल खोल कर..
बहुत खूब !
बहुत धन्यवाद मीना पाठक मैम !
आदरणीय योगराज प्रभाकर सर , आपकी टिपण्णी ने हौसला बढ़ाया ! सादर धन्यवाद !
क्या बात है ,,  बहुत खूब 
ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये आदरणीय अरुन जी | सादर 
//धूप  में जलना  पड़ेगा फिर सुबह से शाम तक
जिद  है बच्चों  की उन्हें  कुछ जाफरानी चाहिए// हासिल-ए-ग़ज़ल शेअर।    
एक एक शेअर नगीने की तरह जड़ा है भाई अरुण जी. हर शेअर एक अलग कहानी बयान कर रहा है. इस उच्च स्तर की ग़ज़ल पढ़ कर रूह को सुकून पहुंचा, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
ajay sharma जी , गज़ल को अतिशय मान दिया आपने ! विशेष धन्यवाद आपको !
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद जो आप सब ने इस नौसिखिए की गज़ल को सराहा , हौसला बढ़ाया !
वाह! बहुत सुन्दर! लाजवाब! आपको बहुत बहुत बधाई भाई जी!
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