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पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए/ ग़ज़ल

पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए

जब से अपने ख्वाब यारो आसमानी हो गए

 

पांच सालों में महल सा अपने घर को कर लिया

चोर डाकू करके मेहनत खानदानी हो गए

 

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

 

यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी 

देखते देखते हम जाफरानी हो गए

 

“दीप” गम के पर्वतों को तुमने क्या पिघला दिया  

गर्दिशों की कौम के सब पानी पानी हो गए

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 16, 2013 at 4:49pm

खूबसूरत ग़ज़ल हुई आ संदीप जी...

हार्दिक बधाई स्वीकारें...

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 14, 2013 at 9:44am

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

बहुत अच्छा शे’र हुआ है संदीप जी। दाद कुबूलें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 14, 2013 at 2:52am

भाई, संदीप जी, कमाल की ग़ज़ल हुई है.  अधोलिखित शेर के लिये बहुत-बहुत बधाई.   

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

वाह भाई वाह !

यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी 

देखते देखते हम जाफरानी हो गए

सानी में शायद देखते देखते  के मध्य ही का होना बनता है न ?

शुभ-शुभ

Comment by vijay nikore on December 8, 2013 at 1:53pm

बहुत ही खूबसूरत गज़ल लिखी है। बधाई।

Comment by Abhinav Arun on December 8, 2013 at 5:36am

हर शेर उम्दा है पूरी ग़ज़ल मुकम्मल और जानदार ..

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए



यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी

देखते देखते हम जाफरानी हो गए

...बहुत बहुत बधाई आपको संदीप जी 

Comment by ajay sharma on December 7, 2013 at 10:42pm

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए

visheshkar is sher ne manmoh liya 

Comment by savitamishra on December 7, 2013 at 6:35pm

तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा

एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए...बहुत सुन्दर

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2013 at 5:44pm

वाह वाह आदरणीय संदीप भाई साहब बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 7, 2013 at 4:57pm

सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० सदीप जी ..

पांच सालों में महल सा अपने घर को कर लिया

चोर डाकू करके मेहनत खानदानी हो गए............हालात-ए-हजरा पर सुन्दर शेर 

हार्दिक बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2013 at 2:22pm

आदरणीय योगराज सर जी सादर प्रणाम

आपका ह्रदय से धन्यवाद और आभार संशोधन हेतु

स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये

कृपया ध्यान दे...

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