For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम से न हो अगर बात तो बुरा लगता है,

तुम से न हो अगर मुलाकात तो बुरा लगता है!

तुमसे मिलने की तारीखें तो तय कर लूँ,

मगर हो जाये फिर बरसात तो बुरा लगता है!

हर पल है चाह तेरी हर पल तेरी ही आरजू है,

तेरे दीदार की दिल में कोई जुस्तजू जगी है,

न समझो तुम मेरे  जज्बात तो बुरा लगता है!

सदियों से चाह है तेरे दीदार की,

अब तो हद हो गयी मेरे इंतज़ार की,

ये दिन तो बीत जाते है सदियों से लम्बे,

मगर बीत जाये चांदनी रात तो बुरा लगता है!

क्या अजब कशिश है मुझे ये तेरे इश्क की,

क्या कल्पनाये है आँखों में ये तेरे इश्क की,

क्या फिजाओं में है फैली महक तेरे इश्क की,

न समझो तुम मेरे हालात तो बुरा लगता है!

तुम से न हो अगर बात तो बुरा लगता है,

तुम से न हो अगर मुलाकात तो बुरा लगता है!

न जाने कितना भटका हूँ अभी तक तेरी तलाश में,

बहुत  मय पी चूका हूँ  तुझसे मिलने की प्यास में,

आँखों में सूनापन और फिर दिल हो गम्जात तो बुरा लगता है!

तुम से न हो अगर बात तो बुरा लगता है,

तुम से न हो अगर मुलाकात तो बुरा लगता है!

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 518

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 17, 2013 at 1:55pm

 

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई अनुरागजी।  लेकिन......  तारीफ ज्यादा करने से नखरे दिखाएगी ।

Comment by बृजेश नीरज on September 15, 2013 at 8:39pm

अच्छा प्रयास है आपका. आपको हार्दिक बधाई.

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 15, 2013 at 11:52am

सच कहा आपने डॉ साहब बुरा तो लगता है बहुत बुरा लगता है ऐसे में, प्रयास बेहद अच्छा किया है आपने इस हेतु बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 15, 2013 at 10:23am

सुन्दर रचना बनी है हार्दिक बधाई 

टिपण्णी क्या करू कुछ समझ नहीं आता है 

टिपण्णी न करू तो पढ़ा नहीं ऐसा लगता है 

Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 11:07pm
सुंदर रचना आ0 अनुराग जी । बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 14, 2013 at 2:08pm

आदरणीय अनुराग जी , सुन्दर नज़्म की रचना हुई है !!! रचना के लिये बधाई !!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2013 at 1:30pm

आदरनीय अनुराग जी ..

क्या फिजाओं में है फैली महक तेरे इश्क की,

न समझो तुम मेरे हालात तो बुरा लगता है!...शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई के साथ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 14, 2013 at 11:21am

क्या अजब कशिश है मुझे ये तेरे इश्क की,

क्या कल्पनाये है आँखों में ये तेरे इश्क की,

क्या फिजाओं में है फैली महक तेरे इश्क की,

न समझो तुम मेरे हालात तो बुरा लगता है!.........वाह! क्या खूब कहा..दिल को छू गई ये पंक्तियाँ

बहुत ही गहरी रचना , बहुत बहुत बधाई ,आदरणीय डा. अनुराग जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service