For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बदलियों से चाँदनी का झिलमिलाना शेष है।
घन तिमिर में दीपकों का बुदबुदाना शेष है॥
सावनों की खो चुकी झड़ियाँ कहीं मिल जाएँगी,
देवदारों की कतारों का सजाना शेष है।
फिर घृणा उन्मादिनी सी दौड़ती है प्राण में,
प्रीत के आखर अढ़ाई कसमसाना शेष है।
हलचलों में खो चली है रात की नि:शब्दता,
भोर की पहली किरण का खिलखिलाना शेष है।
रूढ़ियों के बाँध सारे तोड़ कर कविता बहे,
पीर की प्राचीर में यूँ छटपटाना शेष है।
फिर परिन्दों ने बदल दी आज उड़ने की अदा,
हाय! लेकिन तितलियों का तिलमिलाना शेष है।
बैरियों की घात से,आघात से अवगत हुए,
यार की मीठी छुरी से घर बचाना शेष है।
गाल गीले भी हुए,रतनार भी,गुलनार भी,
चोट खा अन्याय की बस तमतमाना शेष है।
फिर नए दीवार,दर,छज्जे उठाए जाएँगे,
इन पुराने गुम्बदों का चरमराना शेष है।
आह, कितना आस्था की आरती का शोर है,
देवता सा मौन हो कर मुस्कुराना शेष है।
अंतरालों में,सवालों में घुटी है जिंदगी,
पाखियों सा वादियों में गीत गाना शेष है।
सब अदाएँ,भंगिमाएँ हैं बनावट की 'रवी',
चूर मन की मस्तियों में लड़खड़ाना शेष है॥

मौलिक व अप्रकाशित।

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on September 14, 2013 at 7:02pm
इतना स्नेह और आशीर्वाद देने के लिए कोटिश: धन्यवाद ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2013 at 4:33pm

बैरियों की घात से,आघात से अवगत हुए,
यार की मीठी छुरी से घर बचाना शेष है।............लाजवाब शेर 

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर गज़ल पर 

Comment by Abhinav Arun on September 14, 2013 at 9:39am

बड़ी रौ - दार और असरदार ग़ज़ल कही है 

बहुत बधाई !

कहन भी सुन्दर हैं 

वाह वाह 

बहुत शुभकामनायें भी रवि जी !!

Comment by Ravi Prakash on September 14, 2013 at 9:23am
विजय जी एवं भ्रमर जी। सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। आशीर्वाद बनाए रखें॥
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 14, 2013 at 12:20am

रूढ़ियों के बाँध सारे तोड़ कर कविता बहे,
पीर की प्राचीर में यूँ छटपटाना शेष है।

गाल गीले भी हुए,रतनार भी,गुलनार भी,
चोट खा अन्याय की बस तमतमाना शेष है।

प्रिय विजय जी ...बहुत सुन्दर ..भाव प्रबल और कोमल सभी अशआर अच्छे बने
भ्रमर ५

Comment by विजय मिश्र on September 13, 2013 at 12:51pm
बहुत अर्थपूर्ण ,भावपूर्ण रचना ,आभार रविजी .पढकर एकबार और पढ़ने की इच्छा हो उठी|'गाल गीले ...... ' और ' आह , कितना ...... .| मुझे अप्रतिम लगा |रचना के क्रम में उसके अर्थ की सर्वोच्चता का निर्वाह कभी-कभी अत्यंत जटिल होता है और लोग सहज ही समझौता कर आगे बढ़ जाते है |आपकी रचनाओं में इस मर्यादा का अनुशासन सदैव दीखता है |पुनः साधुवाद रवि प्रकाशजी |
Comment by बृजेश नीरज on September 13, 2013 at 12:34pm

वाह! बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
यदि बहर का भी जिक्र कर देते तो सबको सरलता होती।
सादर!

Comment by vijay nikore on September 13, 2013 at 10:48am

इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Ravi Prakash on September 13, 2013 at 8:47am
Thanks Shijju ji.. I have got it..
Comment by vandana on September 13, 2013 at 6:26am

गाल गीले भी हुए,रतनार भी,गुलनार भी,
चोट खा अन्याय की बस तमतमाना शेष है।

बहुत शानदार ग़ज़ल 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service